मासिक धर्म अंधविश्वास नहीं , प्रक्रिया है

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rinkal sharma
पिछले हजारों सालों में समाज के अन्दर महिलाओं की स्थिति में बहुत बड़े स्तर पर बदलाव हुआ है। अगर गुज़रे चालीस-पचास सालों को ही देखे तो हमें पता चलता है की महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक़ मिले, इस पर बहुत ज्यादा काम किया गया है। हम यह तो नहीं कह सकते की महिलाओं की स्थिति में सौ फीसदी बदलाव आया है पर इतना जरुर कह सकते है की महिलाएं अब अपने अधिकारों के लिए और भी अधिक जागरूक हो गयी है।  यहाँ तक कि  समाज में मासिक धर्म जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी खुल कर बातचीत  होने लगी  है। घर—परिवार और स्कूलों में भी बच्चों को इन मुद्दों के बारे में  खुलकर बताया जाता है।
पहले के ज़माने में, समाज में, इस विषय पर जिस तरह से विचार – विमर्श होना चाहिए था , वो तो दूर इस विषय पर बोलने पर भी कड़ी पाबंदी थी।  शिक्षा संस्थानों में भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी जिससे बच्चों को मासिक चक्र के बारे में सही शिक्षा मिल सके।  जब कभी भी हम लोग पहली बार किसी दौर से गुजरते हैं तो हमारे मनोमस्तिष्क में एक हलचल, उधेड़बुन होती है। पहली बार मासिक धर्म आने के दौरान  लड़कियों की मन: स्थिति भी कुछ ऐसी ही रहती है।  लेकिन वह इस विषय पर खुल कर बोल भी नहीं सकतीं थी, सहमी रहती थीं। इस दौरान महिलाओं को अपवित्र समझा जाता था।
पुराने ज़माने में ही नहीं अपितु आज भी ,मासिक धर्म को स्त्री की पवित्रता और अपवित्रता से भी जोड़ा जाता है। ‘अपवित्रता’ का आलम ये है कि इस दौरान महिलाओं को कई रूढ़िवादी  मान्यताओं से भी गुजरना पड़ता है, जैसे  वो रसोई घर में नहीं जा सकती, वे खाना नहीं बना सकती, पूजा घर में प्रवेश नहीं कर सकती। कई स्थानों पर महिलाओं को पुरुष के पास भी नहीं सोने दिया जाता। ये हालात देश के ग्रामीण इलाकों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी ऐसा ही किया जाता है। हमारे देश में भारतीय समाज का एक बड़ा तबका मानता हैं कि महिलाओं में होने वाली माहवारी की प्रक्रिया “अपवित्रता” है।  इस अन्धविश्वास का मूल कारण शिक्षा का अभाव है।  क्योंकि  अगर हम वेदों का अध्ययन करे तो उसमें हमें यह साफ़ देखने को मिलता है कि उस समय मासिक चक्र को एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में ही लिया जाता था।  जिसका जीता जागता उदाहरण  गुवाहाटी में  स्थित प्रख्यात  ” कामाख्या मंदिर ” है।
कुछ समय पहले त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन के ‘महिला विरोधी’ बयान से सोशल मीडिया पर एक जंग शुरू हो गई और देश के युवाओं से गोपालकृष्णन को इसका जवाब भी मिला। बोर्ड के अध्यक्ष नियुक्त हुए गोपालकृष्णन के बयान ने उस वक्त चर्चाएं बटोरी, जब उन्होंने कहा कि महिलाओं को प्रसिद्ध साबरीमला मंदिर में प्रवेश की अनुमति तभी दी जाएगी जब उनकी शुद्धता की जांच करने वाली मशीन का आविष्कार हो जाएगा।गोपालकृष्णन के बयान का मतलब का था कि महिलाओं को तभी मंदिर में दाख़िल होने दिया जाएगा जब ऐसी मशीनें आ जाएंगी जो ये चेक करें कि महिलाओं को मासिक धर्म चल रहा है या नहीं। जिसके बाद से सोशल मीडिया पर ‘हैप्पी टू ब्लीड’ के साथ एक मुहिम शुरू हुई और लोगों ने समाज में मासिक धर्म को लेकर फैल रहे अंधविश्वास के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस दौरान लड़कियों ने हाथ में पेड्स, नैपकिन लेकर फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए और लोगों को जागरूक करने की कोशिश की।
समाज में जहाँ एक ओर गोपालकृष्णन जैसे लोग है , वहीँ दूसरी ओर अरुणाचलम मुरुगनथम जैसे लोग भी है, उन्होंने कम लागत वाले सैनिटरी नैपकिन्स बनाने की मशीन का आविष्कार किया था। मुरुगनानथम ने एक ऐसी मशीन का निर्माण किया था जो सैनिटरी नैपकिन्स सस्ते दाम में उत्पादित करती थी। ऐसी भी कहानी है कि सैनिटरी नैपकिन्स बनाने वाले मुरुगनानथम को उनकी पत्नी एक बार छोड़ कर चली गयी थी। ऐसा उन्होंने पति के काम से शर्म महसूस होने के कारण किया था। ऐसे समाज में, जहां पर इस विषय पर चर्चा करने पर पाबंदी हो वहां पर अगर कोई मासिक धर्म को लेकर सैनिटरी नैपकिन्स बनाने जैसा काम करे तो, वह परिवार शर्मसार महसूस करेगा ही।
हालाँकि मुरुगनाथम को बाद में पद्म सम्मान से नवाजा गया।  अभी कुछ समय पहले प्रदर्शित,‘पैडमैन’ फिल्म अरुणाचलम मुरुगनथम की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित है। इस फिल्म प्रसिद्ध अभिनेता अक्षय कुमार ने अभिनय किया है। चाहे मुरुगनानथम के वास्तविक जीवन पर बनी यह फिल्म हो या फिर  उनको मिला पुरस्कार, ये दोनों ही बातें हमें इस विषय पर समाज में खुल कर बोलने और चर्चा करने का लाइसेंस देती है कि चुप्प मत रहो, ऐसे विषय पर खुल कर बोलो, चर्चा करो, शर्म मत करो।  समाज को शिक्षित करो।  लड़कियों की शिक्षा को समाज का महत्वपूर्ण अंग बनाओ।  गाँधी जी  ने कहा था कि,” एक लड़की की शिक्षा एक लड़के की शिक्षा की उपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि  लड़के को शिक्षित करने पर वह अकेला शिक्षित होता है किन्तु एक लड़की की शिक्षा से पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है ।”  ऐसा करने से समाज संवेदनशील बनेगा और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास संभव हो सकेगा।
#रिंकल शर्मा
परिचय-
नाम – रिंकल शर्मा
(लेखिका, निर्देशक, अभिनेत्री एवं समाज सेविका)
निवास – कौशाम्बी ग़ाज़ियाबाद(उत्तरप्रदेश)
शिक्षा – दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक , एम ए (हिंदी) एवं फ्रेंच भाषा में डिप्लोमा 
अनुभव –  2003 से 2007 तक जनसंपर्क अधिकारी ( bpl & maruti)
2010 – 2013 तक स्वयं का स्कूल प्रबंधन(Kidzee )
2013 से रंगमंच की दुनिया से जुड़ी । बहुत से हिंदी नाटकों में अभिनय, लेखन एवं मंचन किया । प्रसार भारती में प्रेमचंद के नाटकों की प्रस्तुति , दूरदर्शन के नाट्योत्सव में प्रस्तुति , यूट्यूब चैनल के लिए बाल कथाओ, लघु कथाओंं एवं कविताओं का लेखन ।  साथ ही 2014 से स्वयंसेवा संस्थान के साथ समाज सेविका  के रूप में कार्यरत।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।