तनाव: अब और नहीं सहा जाता…

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ps dhanwal

       मैं बहुत ज्यादा तनाव में हूँ अब और नहीं सहा जाता…..जैसा कि विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि ये सुसाइड नोट, इंदौर के प्रसिद्ध राष्ट्रसंत माने जाने वाले भय्यू जी महाराज का है। आपाधापी और भौतिकतावादी की इस दुनिया में सबके अपने-अपने तनाव हैं। कोई पैसे के पीछे, कोई कर्जे में, कोई रिश्ते में, कोई दोस्ती में, कोई पढ़ाई में तो कोई लड़ाई में। कहीं ना कहीं जब हम अपनी आकांक्षाओं और दूसरों के द्वारा हमसे या हमारे द्वारा दूसरों से की गई अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं तो तनाव होना स्वाभाविक है।

तनाव क्या?
मन के भावों में उलझन, मन की लहरों में तीव्र स्पंदन,मन का उदास होना या मन ही मन तारों का बुरी तरह से खिंचाव जो कि असहाय हो जाये और काबू से बाहर हो जाये। या किसी के द्वारा रात दिन भौतिक या आत्मिक प्रताड़ना दी जाए तो। मानसिक क्रिया से  उत्पन्न प्रतिक्रिया तनाव बन जाती है।

ज़िंदगी समाप्त कर लेना सबसे सरल?

जिंदगी समाप्त कर लेना यानी उस तनाव से या अपनों से दूर हो जाना पर उन्हें मझधार में छोड़ जाना, तनावपूर्ण ज़िन्दगी जीने के लिए,  जिंदगी समाप्त कर लेना यानी भाग खड़े होना अपनी जिम्मेदारियों और कार्यों से। जी नहीं यह अंतिम उपाय नहीं है ,यह तो बस बहुत बड़ी नादानी है !

फिर क्या करें?

करने को बहुत कुछ है यदि कुछ देर शांत मन से सोचें तो अपने मन के भावों को समझिए उन्हें शांत होने का मौका दीजिये, क्या और क्यों ये तनाव है? दूसरों से अपेक्षा कम रखिये और दूसरों की अपेक्षाओं के लिए भी ज़रूरत से ज्यादा “लोड” मत लीजिये। अपने आप को उतना ही खींचिए जितना जिंदगी में जरूरी है इतना नहीं कि रबर की तरह खुद को तोड़ने तक। अपने आप को हर कसौटी पर कसिए ,यदि दम है तो खम ठोकिये वरना एक कदम पीछे ले लीजिए। लोग क्या कहेंगे कि मानसिकता से बाहर आ जाइये क्योंकि लोगों का काम है कहना।

 

ज़िंदगी को ख़त्म ना कीजिये !

 

     अपने अहंकार,अपने दब्बूपन या अपनी शेखी बघारने जैसी कोई भी आदत ,कभी भी,किसी भी मोड़ पर आपको धता बता सकती है अतः इनसे बचिए। चमत्कार में विश्वास कम और अपने कर्म में ज़्यादा  रखिये। भगवान हैं तो उनका अस्तित्व मानिए पर हर काम उनके भरोसे ना करिये। अंत में यही की तनाव ही ज़िन्दगी को आगे बढ़ाता है इसलिए उसका प्रबंधन याने उसे “मैनेज” करना सीखिए। यदि नहीं आता तो किताबें पढ़िए, प्रकृति से बातें करिये, अपनों से संबंध सुधारिये, थोड़ा घूम फिर कर आइये। कुछ दिन काम से आराम लीजिये, जो ज्यादा तनाव देते हैं उनसे थोड़ी दूरी बना लीजिए, कुछ भी कीजिये पर तनाव में अपनी ज़िंदगी को ख़त्म ना_कीजिये ! अंततः
एक अन्धेरा लाख सितारे,
एक निराशा लाख सहारे !
सबसे बड़ी सौगात हैं जीवन ,
नादाँ हैं जो  जीवन से हारे ••!

#पी एस धनवाल

 बालाघाट(मध्यप्रदेश)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।