स्त्रियाँ सिर्फ प्रेम होती हैं,
अगाध प्रेम,
सागर की तलहटी के मानिन्द
जिसकी गहराई की,
कोई माप नहीं!
क्षितिज के आँचल सी सुर्ख,
आँखों को लुभाती,
आकाश सी विस्तृत,
मन को ठन्डक पहुचाती,
दशों दिशाओं सी, रिश्तों में गुथीं !
जिसका कोई ओर छोर नहीं !
फूलों सी…महकती,
चिड़ियों सी चहचहाती !
झरने सी मीठी,
तुलसीदल सी पवित्र,
गीता सी सत्य,
रामायाण की चौपाई सी सरल
हाँ स्त्रियाँ सिर्फ प्रेम होती हैं!
सुख दुख, अच्छा बुरा,
सबको आत्मसात कर,
सम की परिभाषा में खुद को ढालती..!
छल को माफ कर,
खुद…का अस्तित्व नकारती !
शीतल घड़े सी,
सबकी प्यास बुझाती!
अपने पराये का भेद मिटाती,
बदली सी सब पर नेह बरसाती !
हाँ स्त्रियाँ सिर्फ प्रेम होती है!
पत्थर को पूजती,
कुल को मान दिलाती!
खुद भूखी रह,
दूसरो की उम्र बढाती !
व्रत, त्यौहार,जोग,टोटका!
सब निभाती !
अपनों के मंगल के लिये,
यम,शनि सब से लड़ जाती !
दूसरों को अहम् को ऊँचा रखने के लिये !
अपनी सोच तक की बलि चढ़ाती !
हाँ स्त्रियाँ सिर्फ प्रेम होती हैं !
मेहंदी सी,
तन मन पर रच जाती !
लाल महावर सी,
हर पल हर दिल उमंग जगाती!
अहसासों की माला गूंथती!
मन के मनकों से,
अपनों के
सपनों को सजाती!
अनन्त नदी सी खुद को
मलिन कर भी,
दूसरों के लिए जीवनदायी बन जाती!
हाँ स्त्रियाँ सिर्फ प्रेम होती हैं
#किरण मिश्रा “स्वयंसिद्धा”
नोयडा(उत्तर प्रदेश )