मैं बेटी हुं बेटी होना देखो कैसे श्राप हुआ,
ऐसा लगता है जैसे मेरी मां से कोई पाप हुआ,
क्यूं मेरे पैदा होते ही दादी ने मुहं फुलाया था,
क्यूं ना लड्डू बांटे थे, क्यूं बाबा ने मुंह छुपाया था,,
क्यूं मां की ममता भी मौन हुई क्यूं पिता को गुस्सा आया था,,
ऐसा लगता था जैसे घर में कोई अभिशाप हुआ,,,
मैं बेटी हुं बेटी होना देखो कैसे श्राप हुआ,,
बेटी पूछ रही है जग से, क्यूं मन्दिर में जाते हो,
जब बेटी से करते नफरत तो क्यूं मां को भोग लगाते हो,
बेटी कोख़ में मारोगे तो एक दिन पछताओगे,
हर घर में बेटे होगें तो बहू कहां से लाओगे,
धरा से मिट जाते हैं वो घर जिनमें बेटी पर आघात हुआ,,
मैं बेटी हुं बेटी होना देखो कैसे श्राप हुआ,,
#सचिन राणा “हीरो”
हरिद्वार, उत्तराखंड