रैन तुम्हारे संग बीते फिर , बीते भोर ख्यालों में, बन पगली फिर फिरा करुं मैं , तपते हुए उजालों में । मैं बरखा बन-बन बरसुं, बन पतझर झर- झर जाऊँ रे, शीत ऋतु में तपुं आग सी, ग्रीष्म में ठंडक पाऊँ रे, करूँ कल्पना प्रेम की अब चाहे होगा […]
काव्यभाषा
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