कहाँ हो रही चूक, कहाँ हो रही गड़बड़. आखिर क्या आंतरिक इस संसार में झगड़े की जड़।। हे मानव- संयत कर अपना मन, कुछ तो कर चिंतन.. यह सत्य है कि, एक-न-एक दिन होगा। तेरा इस संसार से बिछोह , फिर क्यों करता है- इतना मोह।। काहे को तू मेरा-मेरा […]
काव्यभाषा
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