हे राम वहां तुम कैसे हो,
कुछ तो बतलाना ऐसे हो।
हैं भक्ति-भाव में डूबे हम,
क्यूँ अपनेपन से रीते हैं।।
अपने-अपने का रंग चढा़,
पर,परहित कहां पर होता है।
मन की सारी इच्छाओं का,
अंत कहां पर होता है।।
जीवन की आपा-धापी में,
श्वांसों की गणना मंद हुई।
धन के सारे जोड़-तोड़ में,
बस प्रेम की चर्चा बंद हुई।।
उजड़ी है सारी बगिया जो,
फूलों से महका करती थी।
वह सुबह-सवेरे मन अपना,
बस राम को अर्पण करती थी।।
शब्दों की दुनिया में तो अब,
बस राग-द्वैष महामारी है।
जीवन की कस्मों-रस्मों में,
बस टूटन और मक्कारी है।।
क्यूँ प्रेम की गंगा धारा में,
अपने-अपनों को छलते हैं।
क्यूँ अमरबेल की साखों में,
वे विष की गांठे धरते हैं।।
क्यूँ रंग बदलती दुनिया में,
आने से तुम भी डरते हो।
ये धरती तो धरती मां है,
जो राह तुम्हारी तकती है।।
हम प्रेम-प्यार के रंगों से,
दुनिया को रंगने वाले हैं।
शबरी के मीठे बेरों से,
अब भूख मिटाने आ जाओ।।
जीवन तो जीवन होता है,
सारा मन दर्पण कर देंगे।
जो मन मेरा कलुषित होगा,
उसका तर्पण हम कर देंगे।।
मन के उन सारे भावों को,
बस राग बदल कर दे देंगे।
न तुम होगे,न हम होंगे,
जीवन में प्रेम के सुर होंगे।।
क्या सांझ हुई,क्या सुबह हुई,
जीवन की फाका-मस्ती में।
यूं रूप बदलकर फिर से तुम,
सबकी मुस्कानो में आओ।।
है राह तकी बरसों हमने,
अब शीतल हमको कर जाओ।
और मंद-मंद मुस्कानों से,
ये घट सारा भरकर जाओ..
हे राम,वहां तुम कैसे हो ……।।
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।