कहाँ हो रही चूक,
कहाँ हो रही गड़बड़.
आखिर क्या आंतरिक
इस संसार में झगड़े की जड़।।
हे मानव-
संयत कर अपना मन,
कुछ तो कर चिंतन..
यह सत्य है कि,
एक-न-एक दिन होगा।
तेरा इस संसार से बिछोह ,
फिर क्यों करता है-
इतना मोह।।
काहे को तू मेरा-मेरा कर,
स्वयं को मिटाने पर तुला।
तभी तो गोस्वामी जी कह गए-
‘मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला’।
झूठ-दगा-चोरी-चकारी,
मोह से होती सकल बीमारी।
विषय रोग सबको सताए,
पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़।।
मोह ही है-
इस संसार में झगड़े की जड़।।
#रामशर्मा ‘परिन्दा’
परिचय : रामेश्वर शर्मा (रामशर्मा ‘परिन्दा’)का परिचय यही है कि,मूल रुप से शासकीय सेवा में सहायक अध्यापक हैं,यानी बच्चों का भविष्य बनाते हैं। आप योगाश्रम ग्राम करोली मनावर (धार, म.प्र.) में रहते हैं। आपने एम.कॉम.और बी.एड.भी किया है तथा लेखन में रुचि के चलते साहित्य