जब शाम का सूरज,
टाँक रहा होता है पश्चिम में चित्र
खूब धूसर, चटक लाल रंग से..
जब धूप थके पाँव
लौटने लगती है घर को,
तब आकाश थोड़ा नरम होकर
फैला लेता है अपनी बाँहें।
तब धुंधलका
उसकी बाँहों से छूटकर,
फैल जाता है पूरी धरती पर,
तब हवा साँस थामकर
अगवानी करती है उसकी।
धुंधलका घुलने लगता है,
रात में
धीरे-धीरे-धीरे….
तब तुम लगती हो मुझे पूरी धरती।
जो समेट रही होती है,
उस रात की पूरी महक को..
चांदनी के खुले धवल बाल को,
तारों की टिमटिमाहट को;
और तुममें महसूसता हूं मैं,
प्रेम की आदिम गंध..
अपनी देह–मन-प्राण में।
#डॉ. आशुतोष राय
परिचय: सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) के रुप में डॉ.आशुतोष कुमार राय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज( फ़िरोज़ाबाद,उत्तर प्रदेश) में सेवारत हैं। आपका पूर्व कार्यक्षेत्र पीजीटी (हिन्दी )केन्द्रीय विद्यालय संगठन,नई दिल्ली रहा है। आपकी रचनाओं में भावपूर्णता स्पष्ट देखी जा सकती है।आप भी शौकिया लेखन में सक्रिय हैं।