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माँ तू ही एक ऐसी अनोखी कृति है,
जिसकी अपने जैसा गढ़ना ही वृत्ति है।
देती है संतान को जन्म मौत से लड़कर भी,
बनाती है फिर उसको,अपने से बढ़कर भी।
मां बनकर मातृत्व लुटाना,तेरे ही बस की बात है,
दी है ईश्वर ने केवल तुझे,ये सौगात है।
गोद में जब तेरे एक नव शिशु खेलता है,
सारा भूमंडल इस दृश्य को देखकर डोलता है।
इस अनमोल खुशी के क्या कहने,
फीके पड़ जाते हैं,सोने और नीलम के गहने।
मातृत्व सुख से वंचित,न कभी कोई स्त्री हो,
पूर्ण होती है माँ बनकर,भले ही कितनी ही धनवान स्त्री हो॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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