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अजब-सी एक आदत है तुम्हारे ग़म में रोने की,
मुसीबत यह कि ये आदत नहीं अब दूर होने की।
न जाने क्यों तेरी यादों को दिल में बन्द रखता हूँ,
अगरचे है पता मुझको नहीं ये चीज़ खोने की।
मेरी आँखों में हरदम तुम बसे रहते हो कुछ ऐसे,
कि जैसे चोर की आँखों में मूरत कोई सोने की।
मेरे जैसे किसी टूटे हुए इंसान से पूछो,
कि घर में अहमियत क्या है किसी सुनसान कोने की..॥
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