साहित्य में नारी का योगदान

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archana dube

हिंदी साहित्य में नारी का योगदान, नारी का जीवन बहुत ही संघर्ष से विरत है महिला साहित्यकारके लिए सबसे पहले बाहरी संदर्भों में उसका आंतरिक समय होता है, जहां वह जीती और सांस लेती है, और वहीं दुसरी ओर समय की चुनौतिया जिससे वे बिल्कुल परे होती है । उनके जीवन व सृजन के बीच अनवरत की स्थितिबनी रहती है, उनकीराह आसान नहीं है उनकी राह में बहुत सी विचारधाराएं व दुविधाएं है ।
पुराणों में नारी के विषय में कहा गया है कि —-प्रकृति शक्ति है और पुरूष शक्तिमान । शक्ति के बिना शक्तिमान का अस्तित्व नहीं है ।
‘‘स्त्री’ का अर्थ तो सर्वविदित है ‘नारी’अर्थात ‘स्त्री’ । साहित्य शब्द ‘सहित’शब्द से भाव अर्थ में व्युत्पन्न हुआ हैं । साहित्य का अर्थ – हित से युक्त होना । साहित्य समाज की अन्यतम विभूति हैं और समाज हैं उसका महान संरक्षक । साहित्य में जीवन के सुख – दुःख, हर्ष- विशाद, आकर्षण – विकर्षण के ताने – बाने से बुना जाता हैं । अर्थात साहित्य में सृष्टाओं के माध्यम से युग और समाज की सारी आकांक्षाएं, सम्पूर्ण चेतनाएं, सभी विचारधाराएं, सारे आंदोलन और प्रवृत्तियां प्रतिबिंबित होती हैं । इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता हैं ।
किसी भी समाज की सभ्यता एवं संस्कृति का ज्ञान उसके साहित्य से होता हैं । सहित्य को निर्मित करने वाला एक मात्र प्राणी मनुष्य हैं । हिंदी के अनेक विद्वानों ने साहित्य शब्द को स्पष्ट करने का प्रयास किया हैं । प्रेमचंद साहित्य को जीवन की आलोचना मानते है, तो प्रसाद की दृष्टि में आत्मा की अनुभूतियों की रहस्यमयी अभिव्यक्ति साहित्य है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास महिला साहित्यकारों के योगदान से लगभग असंपृक्त-अनाक्रांत हैं । वीरगाथाकाल में जहां इनकी उपस्थिति नगण्य हैं । वही भक्तिकाल में मीराबाई, सहजोबाई आदि की समीक्षा अवश्य हुई है लेकिन उसका विस्तृत अध्ययन, अन्वेषण अद्यावधि अनुपलब्ध है । अतः नारी – केंद्रित लेखन केवल नारी ही कर सकती है, एक दुराग्रह से अधिक कुछ नही हैं । लेखन के लिये पुरूष या नारी होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है – संवेदंनशीलता । जाहिर है कि जितना अधिक संवेद्य होगा, उतना ही संप्रेषणीय सफल साहित्यकार सिध्द होगा ।
पुराणों में नारी के विषय में कहा गया है कि —-
विद्या समस्तास्तव देवी भेदाः
स्त्रियों समस्ता सकला जगत्सु
त्वथैकया पूरितमम्वयेतत
का तै स्तुति परोक्ति ।

नासिरा शर्मा का ‘एक और शाल्मली’ जिसमें घर और बाहर अपने अधिकार मांगती आजादी के बाद की उभरती एक अलग किस्म की स्वतंत्रचेता स्त्री है जो पति से संवाद चाहती है, बराबरी का दर्जा चाहती है, प्रेम की मॉग करती है जो उसका हक है । इस पात्र का सृजन बेहद सूझबूझ से किया गया है और यह पात्र आधुनिक स्त्री के एक बहुत बडे वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है ।
नासिरा का एक और उपन्यास ‘ठीकरे की मंगनी’‘जिसमे बचपन में बिना पैसे के लेन-देन के मंगनी हो जाती है लडका बडा होने पर शादी करने से मुकर जाता है । इस पर कद्दावर औरत टूटती नहीं, वह अपना एक घर बनाती है, एक वजूद हासिल करती है और मर्द के लौटने पर उसे दुबारा कुबूल नहीं करती ।
कृष्णा सोबती के “मित्रों मरजानी” डर से बिछुड़ी दिलो- दनिश और जिन्दगीनामा में ग्रामीण एवं नगरीय परिवेश में जी रहे संयुक्त परिवारों के यथार्थ को बडे सादगी से रूपायित किया है । पारिवारिक ढांचे के चरमराहट को ‘सूरजमूखी अँधेरी के’ उन्यास में देखा जा सकता है । यही नहीं नयी पीढी और पुरानी पीढी वैचारिक मतभेद और वैधव्य की त्रासदी को बडे ही सादगी से चित्रित किया है। उषा प्रियंवदा ने मध्यवर्गीय जो नगरों और महानगरो में बस गये है । पर मध्यवर्गीय मानसिकता से उबर नहीं पाते भले ही वे विदेश में रहकर लौटे क्यों न हो । ‘पचपन खम्भे लाल दिवारे’ की ‘सुषमा की टीस’‘रूकोगी नही राधिका’ का निरंतर गतिमान बने रहना ‘शेष यात्रा’ आदि के पात्र पढ लिखकर कही न कही अंधविश्वास और रूढिवादिता से पूर्णत: मुक्त नहीं हो पाती है । ‘शेष यात्रा’ और ‘अंतर्वशी’ में पारिवारिक तनाव के बावजुद भी घुटने नहीं टेकती है, बल्कि प्रतिकुल परिस्थितियो में भी निरंतर आगे बढ़ती रहती है ।
‘शेष यात्रा’ उपन्यास में अनु के पति एक प्रतिष्ठित डाक्टर है । रूपये पैसे और सभी सुख सुविधाओं के बावजूद भी अनू डाक्टर साहब के दिल में अपना स्थान नहीं बना पाती है । प्रणव के व्यवहार से दु:खी ही नहीं होती है अपितु अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठती है । अनु किसको कोसे अपने को या अपने भाग्य को –“ अभी तक इतना सब कहा दबा हुआ था, दिल के किस कोने में गडा हुआ था । इतना सारा प्यार ? उसे अब किसी और की जरूरत नहीं है । वह सब भुलती जा रही उसकी दुनिया में किसी चीज की कमी नहीं है । न महगाई न भुख न अकाल उनके चारों तरफ एक जुलुस है, बीच में वह दोनों है ।“1
साहित्य नारी की सुरक्षा की कीमत देकर इंसाफ हासिल करने के लिए जमीन आसमान एक कर रहा है । अतीत के दस्तावेजों को इकट्ठा कर आधुनिक युग की बेचैन औरतों पर साहित्य प्रकाश डाल रहा है और अपने सपनों को यथार्थ का रूप देने का प्रयास कर रहा है । साहित्य के पृष्ठों पर दर्ज स्त्री चरित्र असंतोष और वेदना से भरा है । वह पुरूष निर्मित इस समाज में स्वतंत्रता और सम्मान चाहती है ।
मूलतः इस समाज में स्त्री की न अपनी कोई जाति है, न ही नाम है और वह बेटी, पत्नी और माँ के रूप में अपनी पहचान पाती है । स्मरण और विचारों के इस संसार में पुरूष वर्ग की स्थापना एक व्यक्ति के रूप में हुई हैं और इसे महज एक आकस्मिक घटना के रूप में स्वीकार किया गया । व्यक्ति के रूप में पुरूष संपूर्ण है और स्त्री तो बस अन्या है ।
हिंदी उपन्यास साहित्य की आधुनिक लेखिकाओं में निरूपमा सोवती अग्रिम पंक्ति में आती हैं । उनके लेखन में नारी-विमर्श की बात उभरकर सामने आई है । ‘पतझड की आवाजें’ उनका प्रथम उपन्यास हैं । उपन्यास की नायिका अनुभा आधुनिकता और स्वाभिमान का प्रतिनिधित्व करती है । बहुत लोग आधुनिक और स्वच्छंद मुक्त यौनाचार को ही आधुनिकता के लक्षण मानते हैं । अनुभा जागरूकता को आधुनिकता का एक मुख्य लक्षण मानती है । आधुनिक होने के लिए दिमाग का खुलापन होना अति आवश्यक है ।
स्त्री का संघर्ष पुरूष से नही है, बल्कि उसकी लडा‌ई उस पूरी सामाजिक व्यवस्था तंत्र और मानसिकता से है जिसने सभ्यता के विकास की आरंभिक स्थिति से ही पुरूष की तुलना में स्त्री को कमतर, कमजोर और पुरूष पर निर्भर रूप से देखा ।
समकालीन हिंदी उपन्यासों में लेखिकाओं ने नारी की वजुद और उसके दिल – दिमाग में चल रहे आत्म जागृति का मंथन प्रतिकार का स्वर निश्चित ही उसके जीवन को नयी दिशा दे रहा है । कृष्णा सोबती के ‘डार से बिछूड़ी’‘मित्रों मरजानी’ दिलों – दानिश’ और ‘जिंदगीनामा’ जैसे उपन्यासों में परिवार, रिश्तेदारी के साथ – साथ दांपत्य जीवन और यौन तृप्ति के लिए दिशाहीन हो रही स्थितियों को बड़ें सूक्ष्म ढ़ंग से अपने उपन्यासों में उकेरा है । कृष्णा सोबती के दिलों – दानिश उपन्यास में विवाहेत्तर सम्बंधों को देखा जा सकता है । दिलों – दानिश में विवाहित होते हुए भी कृपानारायण का महकबानों से सम्बंध है । वैसे वकील साहब के जीवन में पहली औरत महक है और दूसरी औरत उनकी पत्नी । लेकिन पहली होकर भी महक दूसरी औरत ही मानी जायेगी। यहीं नहीं कृपानारायण स्वयं भी स्वीकारता है कि ‌‌‌– “अपनी बात करें तो एक मुसलमानी है, दुसरी मुसलमानी नहीं है हिंदूआनी है ।”2
मन्नू भंडारी का उपन्यास -‘आप का बंटी’ हिन्दी साहित्य में एक मील का पत्थर हैं, जो अपने समय से आगे की कहानी कहता है और हर समय का सच होने के कारण कालातीत भी है।शकुन के जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि व्यक्ति और माँ के इस द्वंद्व में वह न पूरी तरह व्यक्ति बनकर जी सकी, न पूरी तरह माँ बनकर …… और क्या यह केवल शकुन की त्रासदी है? अपने व्यक्तित्व को पूरी तरह नकारती हुई, अपनेमातृत्वकेलिएसंबंधोंकेसारेनकारात्मकपक्षोंकोपीछेढ़केलतीहुईयाउन्हेंअनदेखाकरतीहुई , हिन्दुस्तानकीहजारोंऔरतोंकीयहीत्रासदीहै।
नासिराशर्माका ‘एकऔरशाल्मली’, जिसमेंघरऔरबाहरअपनेअधिकारमाँगतीआजादीकेबादकीउभरतीएकअलगकिस्मकीस्वतंत्रचेतास्त्रीहैजोपतिसेसंवादचाहतीहै, बराबरीकादर्जाचाहतीहै, प्रेमकीमाँगकरतीहैजोउसकाहकहै।
नासिराकाएकऔरउपन्यास ‘ठीकरेकीमंगनी’ ‘जिसमेंबचपनमेंबिनापैसेकेलेन-देनकेमंगनीहोजातीहैऔरलड़काबड़ाहोनेपरशादीकरनेसेमुकरजाताहै।इसपरकद्दावरऔरतटूटतीनहीं, वहअपनाएकघरबनातीहै, एकवजूदहासिलकरतीहैऔरमर्दकेलौटनेपरउसेदुबाराकुबूलनहींकरती।
नारीवादीलेखनआजकेसमयकीजरूरतहै।आधुनिकताऔरउदारसोचकेतमामदावोंकेबावजूदस्त्रीकीसामाजिकस्थितियाउत्थानमेंकोईबड़ाक्रांतिकारीपरिवर्तननहींआयाहै।आजभीवेसमझौतोंऔरदोहरेकार्यभारकेबीचपिसरहीहैं।पुरुषसत्ताकीनीवेंहमारेसमाजमेंबहुतगहरायीतकधँसीहुईहैं।इसेतोडना, बदलनायासँवारनाएकलम्बीलड़ाईहै।साहित्यऔरशिक्षाहोयासामाजिकसंगठन, हरक्षेत्रमेंस्त्रियाँअपनीतरहसेअपनीलड़ाईलड़रहीहैंऔरस्त्रियोंकीपारंपरिकदासतामेंबदलावलानेकीकोशिशमेंरतहैं।
कथा-साहित्यमेंस्त्रीचेतनानेअपनीउपस्थितिपूरीगहराईऔरशिद्दतसेदर्जकरवाईहैपरहिन्दीसाहित्यमेंतथाकथितस्त्रीविमर्शऔरविचारइतनेबौद्धिकस्तरपरहैकिआमऔरतोंतकयाउनऔरतोंतक, जिन्हेंसचमुचजागरूकबनानेकीजरूरतहै, यहपहुँचहीनहींपाता।यहकामसाहित्यकेस्त्रीविमर्शकारोंसेकहींअधिकमहिलासंगठनऔरजमीनीतौरपरउनसेजुड़ीकार्यकर्ताकररहीहै।
महादेवीस्त्रीकोलेकरअपनेसमयकीसोचपरयास्थितियोंपरकोईबयाननहींदेतींपरउससमयसेउठाएगएएकस्त्रीपात्रकारोंगटेखड़ेकरदेनेवालाचित्रणकरतीहैं, वहअपनेआपमेंएकबयानहै।कृष्णासोबतीकी‘मित्रोमरजानी’, उषाप्रियंवदाकी‘पचपनखंभे-लालदीवारें’, मन्नूभंडारीकीकहानियाँ ‘बंददराजोंकासाथ’, तीननिगाहोंकीएकतस्वीर, अकेली, नईनौकरी, स्त्रीसुबोधिनीपरंपराऔरविद्रोहकेसंधिकालमेंखड़ीस्त्रीकीकहानियाँहैं।
आज के दौर में भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थानदिया गया है । वह भी सभी कार्य कर सकती है जो एक पुर्प्प्ष करता है, वह भी एक पुरूष के समान है उससे अधिक कार्य कर सकती है और करती भी है ।

परिचय-

नाम  -डॉ. अर्चना दुबे

मुम्बई(महाराष्ट्र)

जन्म स्थान  –   जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा –  एम.ए., पीएच-डी.

कार्यक्षेत्र  –  स्वच्छंद  लेखनकार्य

लेखन विधा  –  गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।

कोई प्रकाशन  संग्रह / किताब  –  दो साझा काव्य संग्रह ।

रचना प्रकाशन  –  मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से  मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।

  • काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।

  • कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।

  • दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।

  • अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।