सूर्य उपासना का पर्व :मकर सक्रांति

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rajesh sharma
मकर सक्रांति को उत्तरायण,माघी, खिचड़ी संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिवर्ष हम सब मकर सक्रांति मनाते हैं। पोष माह में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं,इसीलिए इसे मकर सक्रांति कहते हैं।
   यह सूर्य उपासना,सूर्य पूजा का दिन है। इस दिन सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। सूर्य नमस्कार करना चाहिए। सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी बढ़ जाती है। तीव्रता बढ़ने से मनुष्यों में नव चेतना आती है और कार्यशक्ति का विस्तार होता है।
   खेतों में सरसों लहलहाने लग जाती है।खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं।पीली सरसों के खेत मन मोह लेते हैं। यह फसलों के आगमन की खुशी का पर्व है।
सुख और समृद्धि का दिन है मकर सक्रांति।
सर्दियों में वातावरण का तापक्रम बहुत कम रहता है। पाला गिरता है,पत्तियों पर पानी की बूंदें जमा हो जाती हैं।  कोहरा,चारों ओर ओस गिरती है। कोहरे के कारण अंधेरा हो जाता है। सर्दियों में कई रोग हो जाते हैं। बीमारियां जल्दी हो जाती है,इसलिए तिल व गुड़ जो शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं,के व्यंजन बनाए  जाते हैं। तिल-गुड़ के लड्डू,तिल पपड़ी गजक आदि बनाकर खाए जाते हैं।
बसंत का आगमन होता है मकर सक्रांति से। प्रकृति में महक ही महक होती है फूलों की,सुगंधित वातावरण और अंधकार के नाश एवं प्रकाश के स्वागत का पर्व है मकर सक्रांति।
   पूर्ण आस्था व विश्वास से मकर सक्रांति के दिन दान करना चाहिए। तिल का दान करने से पुण्य मिलता है। तिल के तेल से बने व्यंजन बनाकर सेवन करना चाहिए।
  भगवान सूर्यदेव की पूजा-उपासना करते श्वेतार्क,रक्त रंग के पुष्प काम में लेने चाहिए। इस दिन महादेव शंकर ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान भी प्रदान किया था। माँ गंगा भी मकर सक्रांति के दिन ही सागर में मिली थी। माघ मेले का प्रथम स्नान इसी पर्व से माना जाता है। अंतिम स्नान महाशिवरात्रि पर होता है।महाभारत में वर्णन आता है कि,पितामह भीष्म ने अपने शरीर का त्याग भी मकर संक्रांति के दिन ही किया था।
  हरिद्वार,काशी,गंगासागर जैसे पवित्र तीर्थ स्थानों पर लोग स्नान कर मकर संक्रांति पर धन्य हो जाते हैं।
  सूर्य के धनु राशि से मकर राशि यानी एक राशि से दूसरी राशि में जाने की विस्थापन क्रिया को सक्रांति कहते हैं, और मकर में प्रवेश करने के कारण मकर सक्रांति कहलाती है। सूर्य दिशा बदल देता है यानी दक्षिणायन सर उत्तरायण की ओर हो गया होता है। उत्तर की ओर सूरज के बढ़ने से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगेगी।
   हमें सर्दियों में कुछ घण्टे सूर्य की धूप में बिताना चाहिए। विटामिन डी के साथ ही हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए ये जरूरी है।धूप में बैठने से शरीर स्वस्थ रहता है। सर्दी की धूप शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होती है।
   इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है। स्नान के बाद दान-पूजा-तप- जप का महत्व है। इस दिन गंगा सागर में विशाल मेला लगता है। इस दिन दान देने से पुण्य लाख गुणा बढ़ जाता है।
  भारत व नेपाल में यह पर्व फसलों के आगमन की खुशी का पर्व होता है। अन्नदाताओं के चेहरे पर खुशी आ जाती है। नव उल्लास नव उमंग का पर्व है मकर सक्रांति। दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है।
उतर भारत में लोहड़ी पर्व इसी दिन मनाते हैं। मध्य भारत में इसे सक्रांति के नाम से मनाते हैं।
  भारत के गुजरात राज्य में इसे उत्तरायण तो उत्तराखंड में उत्तरायणी भी कहते हैं।
  इस दिन देव धरती पर अवतरित भी होते हैं,इसीलिए मनुष्य इस दिन पुण्य दान धार्मिक अनुष्ठान जप इत्यादि करते हैं। गो माता को चारा डालना,गो माता की पूजा करना और गोशालाओं में जाकर सेवा करने जैसे पुण्य कर्म करते हैं।
    मकर सक्रांति के दिनों में बच्चे पतंग उड़ाते हैं। कुछ समय धूप में बिताते हैं। हँसी-खुशी का यह पर्व मिलकर मनाएं,  खूब खाएं, जमकर पतंगें उड़ाएं। गीत- संगीत में खो जाएं और वो काटा से वातावरण गुंजाएं।
#राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’
परिचय: राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९७० तथा जन्म स्थान-ओसाव(जिला झालावाड़) है। आप राज्य राजस्थान के भवानीमंडी शहर में रहते हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है और पेशे से शिक्षक(सूलिया)हैं। विधा-गद्य व पद्य दोनों ही है। प्रकाशन में काव्य संकलन आपके नाम है तो,करीब ५० से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। अन्य उपलब्धियों में नशा मुक्ति,जीवदया, पशु कल्याण पखवाड़ों का आयोजन, शाकाहार का प्रचार करने के साथ ही सैकड़ों लोगों को नशामुक्त किया है। आपकी कलम का उद्देश्य-देशसेवा,समाज सुधार तथा सरकारी योजनाओं का प्रचार करना है।

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