Read Time2 Minute, 35 Second
कुछ अँधेरों के साथ रहती हूँ
यूँ उजालों की बात कहती हूँ
बनके “माही” में ज्वार भाटा भी
इस समन्दर के साथ बहती हूँ
2)-
पर्त दर पर्त जब भी खुली हूँ मैं
आँसुओं से सदा ही धुली हूँ मैं
रुख़ बदल डालूँगी इन हवाओं का
आज इस बात पर आ तुली हूँ मैं
3)-
हूँ ग़ज़लों की मलिका-औ-गीतों की रानी
फ़िज़ाओं ने लिक्खी अज़ब एक कहानी
न जाने ख़ुदा ने गढ़ा कैसे मुझको
पड़ूँ भारी सब पर मैं पागल दीवानी
4)-
ख़ुद से कितने गिले क्या कहें
क्यूँ हैं लब ये सिले क्या कहें
तेरे दर तक पहुँच तो गए
पाँव कितने छिले क्या कहें
5)-
न थे पहले अकेले हम न तन्हा आज रहते हैं
सुनो कुछ अनकहे किस्से हमारे राज कहते हैं
कभी शोला कभी शबनम कभी दुर्गा कभी काली
कयामत हैं ख़ुदा की हम अज़ूबे हाथ गहते हैं
6)-
आप समझें तो सही हालात को
और ना आगे बढायें बात को
हम किसी की हैं अमानत जान लें
आप ना माँगें हमारे हाथ को
7)-
प्यार से हो भरी वो नज़र चाहिए
दिल है बेघर मेरा एक घर चाहिए
पल दो पल का सहारा गँवारा नहीं
साथ तेरा सनम उम्र भर चाहिए
©डॉ प्रतिभा ‘माही’
संक्षिप्त परिचय
****************
♦डॉ०प्रतिभा ‘माही’
♦नियुक्ति—- सहायक के पद पर कार्यरत
(कार्यालय ) उप निर्देशक
( पशु पालन एवं डेरी विभाग )
पंचकूला, हरियाणा
♦निवास स्थान— पंचकूला (हरियाणा)
♦योग्यता— डबल एम०ए ( राजनीति शास्त्र व समाज शास्त्र ) पी०एच०डी० / डी०लिट०(मानद)
♦साहित्यिक गुरु– डॉ०अशोक शर्मा ‘अक्स’
♦सृजन— गीत / ग़ज़ल / रुबाई / मुक्तक / छन्द / दोहे / कवित्त / भजन / छन्दमय कविताएँ / हाइकु / ताँका / क्षणिकाएँ / छन्द मुक्त कविताएँ / लेख / संस्मरण / लघुकथा/ साक्षात्कार व कहानी इत्यादि अर्थात (गद्य व पद्य साहित्य की सभी विधाओं में सृजन)
♦कार्य कुशलता —-रेखांकन /मंच संचालन/ फ़ोटो एडिटिंग/ पेंटिंग व आर्ट एण्ड क्राफ्ट इत्यादि।
Post Views:
798