रोजगार का पथ

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avdhesh
पाल-पोसकर बच्चे को विद्यालय भेजा।
अँगड़ाई लेते सपनों को खूब सहेजा॥
तन मन धन को काट,उसे भरपूर पढ़ाया।
हर उपाधि के साथ,आरजू बीज उगाया॥
कर कठोर व्रत,साध साधना शिक्षा पाई।
वक्ष पिता की चौड़ा,माई अति मुस्काई॥
लेकर उपाधि साथ,चला रोजी को पाने।
हुई रोटियाँ दूर, उपाधियां लगी चिढ़ाने॥
यहाँ-वहाँ धकियाया,बेबसी का वह मारा।
बन्द हुई हर राह,हुआ वह बहुत बिचारा॥
एक तरफ दायित्व,दूसरी ओर विफलता।
ज्यों हो ईदी चाँद,पहुँच से दूर सफलता॥
मरणासन्न आरजू,घर वाले पुचकारें।
शिक्षा है इक द्यूत खेल जिसमें हम हारें॥
ना-ना सुनना,ना-ना कहना सिर पर भारी।
आरक्षण की कोढ़,जानलेवा बीमारी॥
बढ़ता जाए घर का कर्ज,बहन की शादी।
माई-बाबा मूक और बेसुध है दादी॥
कहे भतीजी,लिखो लेख शिक्षा पर चाचा।
कैसे कहूँ,सुनो बिटिया !मन तेरा काचा॥
शिक्षा उनके लिए जरूरी जिनकी सत्ता।
है गरीब के लिए नौकरी बर्रे-छत्ता॥
शिक्षा व रोजगार बीच कोई ना नाता।
आरक्षण के देश,जन्म ना देहुँ विधाता॥
                           #अवधेश कुमार ‘अवध’

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