जब से दूर हुए तुम हमसे,
मन का आंगन सूना है।
तुम संग जीवन रंग बिरंगा,
तुम बिन कितना सादा है ?
सुधियों की आवाजाही में
उपजी कितनी बाधा है ?
ख़ुशी हो गई आधी तुम बिन,
गम का हिस्सा दूना है।
जब से दूर हुए तुम हमसे,
मन का आंगन सूना हैll
सारे मुक्तक मंत्र हुए हैं,
गीत भजन में निखरे हैं।
कविताओं के पुष्प,दुःखों के,
कल्पवृक्ष से उतरे हैं।
इस साधू मन के भीतर ही,
एक धधकता धूना है।
जब से दूर हुए तुम हमसे,
मन का आंगन सूना हैll
#राम लखारा ‘विपुल’
परिचय: भारतीय डाक विभाग में एसबीसीओ शाखा में कार्यरत राम लखारा ‘विपुल’ का जन्म राजस्थान के छोटे कस्बे सिणधरी में १४ अगस्त १९९२ को हुआ है। अंग्रेजी साहित्य में स्नातक और हिंदी साहित्य में परास्नातक (एमए) राम लखारा की पहचान आज की पीढ़ी के युवा कवि में है। श्रृंगार और जीवन दर्शन इनकी कविताओं का मुख्य विषय रहा है। यदि इनके प्रकाशन देखें तो- कई राष्ट्रीय -प्रादेशिक समाचार पत्रों सहित अंतर्राष्ट्रीय वेब पत्रिकाओं में इनकी कविताओं का प्रकाशन जारी है। काव्य संग्रह ‘कविता अनवरत-1(२०१५ )’,’कविता अनवरत-1(२०१६)’,’कलम के कदम’,’सत्यम प्रभात’,’काव्य कलश’,’प्रेम काव्य सागर (२०१६)’ सहित इनके नाम ‘उन्वान साझा संग्रह’ हैl विभिन्न कवि सम्मेलनों,काव्य गोष्ठियों और आकाशवाणी में इनकी कविताएं निरंतर गुंजायमान हैं।