पुरखों के भुनसारे

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vinay
लाया रखा अमावस को भी ताकत से उजियारे पर।
सबका हिस्सा एक बराबर पुरखों के भुनसारे पर॥
बना नहीं मैं पाया सीमा विस्तारों पर, चला हुआ हूं,छांव खुशी की नहीं मिली है।
मैं अभाव में ढला हुआ हूं॥
चोटी मिली बाप के दम से,बेटा खड़ा सहारे पर।
व्यापक सोच-नजरिया बदले मेरे चिंतन के स्तर को।
दृढ़ निश्चय से रोक सका खुद गिरते हुए कहर को॥
तोड़ दिया उलझन की बेड़ी को,मेरे पांव किनारे पर।
धरती के ऊपर जो फैला मेरा भी तो आसमान है॥
आंगन जंगल जल को लेकर इतना काहे परेशान है।
मुंह का कौर बनाना हो तो आया तेरे व्दारे पर॥

           #विनय पान्डेय

परिचय : विनय पान्डेय मध्यप्रदेश के कटनी में रहते हैं। आपका व्यवसाय पान्डेय ग्रुप आफ कम्पनीज प्राईवेट लि. है। एमबीए की शिक्षा पा चुके श्री पाण्डेय की विशेष रूचि मुक्तक,छंद, ग़ज़ल और हास्य कविता लिखने में है। उपलब्धियों की बात करें तो,कवि सम्मेलन और मुशायरा समूह का सफलतापूर्वक संचालन करते हैं। कई पत्रिका एवं समाचार-पत्र में कविताएँ प्रकाशित होती हैं।

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