इस तरह कभी तुमने सांझ को ढलते देखा है।
दूर कहीं आसमां के तले जिंदगी को मिलते देखा है॥
चेहरे की झुर्रियाँ बताती हैं हमें कि उम्र को रफ्ता-रफ्ता ढलते देखा है।
कचनार की शाखों से पूछो तो जरा, उसने कभी गुंचों को टूटते देखा है॥
उस वक्त वो था पर्दानशीं,उसे आहिस्ता से बेनकाब होते देखा है। करीब से जाना है समंदर की हुंकार को चट्टानों पर लहरों को सिर फोड़ते देखा है॥
जब बादल फटे,दामिनी दमकी,पत्थर चटके।
ऐसे हालातों में बस्तियों को उजड़ते देखा है॥
दोस्तों की अहमियत मैं जानती हूँ बखूब। दोस्तों को दुश्मन बनते भी मैंने देखा है॥
#डॅा.संगीता श्रीवास्तव
परिचय : डॅा.संगीता श्रीवास्तव का निवास वाराणसी में है। इनकी जन्मतिथि-२९ मार्च १९६५ और जन्मस्थान-वाराणसी (उत्तर प्रदेश)है। आपने पीएच-डी.(हिन्दी) की शिक्षा प्राप्त की है तथा कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में सहभागिता के साथ ही दूरदर्शन-आकाशवाणी के काव्य सम्मेलनों में भी सहभागिता के साथ ही साहित्य संगोष्ठी का आयोजन भी करती हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित हुए हैं। आपकी लेखन विधा-कविता तथा सामयिक लेख हैं। उपलब्धियाँ यह है कि,महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोध एवं अध्ययन केन्द्र (वाराणसी) की आप निदेशिका हैं। इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक संस्थाओं में भी सदस्य के तौर पर सक्रिय हैं। प्रकाशन में-राहुल सांकृत्यायन के कथा साहित्य में ऐतिहासिक दृष्टि,सृजन यात्रा-राहुल सांकृत्यायन सहित कुछ काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। सम्मान में आपको सुमित्रा कुमारी सिन्हा स्मृति सम्मान,मुंशी प्रेमचंद साहित्य सम्मान, विश्व हिंदी सेवी सम्मान(पेरिस में),काशी कवियित्री सम्मान,शिक्षक सम्मान, साहित्यकार-व्यंग्यकार भइया जी बनारसी सम्मान सहित शायरे आज़म सम्मान भी मिल चुका है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी राष्ट्रभाषा का उन्नयन व विकास के साथ ही आत्मिक संतुष्टि भी है।
डॉ संगीता जी
आपकी कविता बहुत बेहतरीन लगी
इससे अतिशय अनुप्राणित हुआ हूँ
Wow …… am a big fan of your
lovely Loving It
Big Fan Of Yours
Making history in our hand …we made a new world …nice line ma’am
बहुत सुंदर कविता है दी। इस तरह तुमने कभी सांझ को ढलते देखा है …
अंतिम पंक्तियाँ मुझे आज के परिपेक्ष में बहुत प्रासंगिक लगीं –
दोस्तों की अहमियत ….
Bhut sunder gazal hai mam