बदलता वक्त

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narendr pal
इस कदर वक्त खुद में उलझता रहा,
चाँद ठहरा रहा ,रात ढलती रही।
कुछ सितारों की उम्र जब पूरी हुई,
टूटकर गिरने की रस्म देखी यहां,
लोग मिन्नत लिए सब खड़े ही रहे
आसमां की थी चुनर उजड़ी जहाँ।
रोशनी की चकाचौंध में था शहर, बस्तियाँ कुछ अँधेरों में जलती रही।
रास्तों के भी पत्थर हैं जख्मी हुए,
एक ठोकर समय की जो उनको लगी,
काँटे  भी  देखे  दर्दों  में  रोते  हुए,
जब किस्मत के तलवों की नींदें जगी।
कुछ मकां दूध से हैं नहाते रहे,
कुछ छतें चांदनी को तरसती रही।
घर के कोने ही खुद को लगे ढूंढने,
आँख खोई-सी मुझसे यहां अब रही,
जो जमाने को देता था मंजिल कभी,
अब स्वयं को ही राहें मिली न सही।
रोशनी का भरोसा था जिस पर हमें,
वो शमा अपनी तारीख बदलती रही॥

                                   #नरेन्द्रपाल जैन,उदयपुर (राजस्थान)

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