तेरा कानून

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annapurna
स्वतंत्र-संस्थानों के कानून-
वारांगणानों के हाव भाव-
दोनों में है कितनी समानता-
कितना मिलाव।
चाँदी की चमक के माप पर
बदलते भाव,वारा-कन्याओं के-
मालिकों के लाभ-हानि के माप पर,
बदलते कानून-स्वतंत्र संस्थाओं के।
ज्यों हो कोई संगीत कुर्सी का खेल-
रुक जाता है संगीत,
बजते-बजते।
खिलाड़ी हो जाते विवश-
चलते-चलते।
स्वतंत्र संस्थाओं के कानून-यों-ही-
अचानक रुक जाते-
हो जाते,परिवर्तित चलते-चलते।
अनुयायी रहते हैं असहाय,परवश
सौंपकर,हाथ-पैर,आँख,मस्तिष्क-
शरीर-सामर्थ्य की सम्पूर्ण पुंजी-
सुनते रहते हैं बोल-
कानून के कर्कश।
यहाँ कानून कानून नहीं-
बस है नाम का।
यह तो सुविधा है-
मालिकों के काम की।
नहीं है कोई भरोसा-
कब क्या होगा-
आज जो होता है,
कल भी,वही होगा,या
हुआ होगा।
भलाई है इसी में,रहें देते समर्थन-
गाँधी के तीन बंदरों की तरह-
चुपचाप-
अनसुने,अनबोले,अनदेखे-
करवाते रहें-
अपने-अपने अधिकारों के-
अपहरण।
बस इतना ही मान लीजिए-
स्वतंत्र संस्थानों में करना है काम –
तो इन नियमों को जान लीजिए…॥
                                                 #डॉ.अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
 परिचय : डॉ.अन्नपूर्णा श्रीवास्तव लेखन में  कविता,कहानी,ग़ज़ल माता के आगमन-विसर्जन के गीत भजन  निबंध आदि लिखती हैं। आप लगभग सभी विधाओं में सृजन करती हैं। आप बिहार से हैं।

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