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बढ़ रही है ठंड यहां,
सर्दी जब से आई।
शीतल हुई है हवा,
नहीं धूप में गरमाईll
सूरज के उगने पर,
अब सुबह भी कुमुनाई।
स्वेटर और चादर संग,
सब खींचें रजाईl
बढ़ गई है…ll
जल्दी ढलती है शाम,
और रातें हैं लंबी।
अंगीठी और बोरसी ले,
दुबके हैं हम भीll
सर-सर-सर तेज हवा,
पर सुनती नहीं भाई।
बढ़ गई है…ll
बच्चे और बूढ़े सब,
दुबके हैं घर में।
युवा मन जूझ रहा,
जीवन समर मेंll
थर-थर-थर कांपे तन,
पर जरूरी है कमाई।
बढ़ गई है…ll
खिली-खिली धूप अब,
सबको है भाई।
बच्चों को लेकर के,
कुतिया भी आई।
बछड़े को बुलाने को,
गइया रंभाईl
बढ़ गई है…ll
चिड़ियों ने चहक-चहक,
दी रात को विदाई।
सुबह की धूप से,
दुनिया ने ऊर्जा पाईl
ठंड से बचने की,
यही रीत है भाईl
बढ़ गई है…ll
#अमिताभ प्रियदर्शी
परिचय:अमिताभ प्रियदर्शी की जन्मतिथि-५ दिसम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-खलारी(रांची) है। वर्तमान में आपका निवास रांची (झारखंड) में कांके रोड पर है। शिक्षा-एमए (भूगोल) और पत्रकारिता में स्नातक है, जबकि कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता है। आपने कई राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक अखबारों में कार्य किया है। दो अखबार में सम्पादक भी रहे हैं। एक मासिक पत्रिका के प्रकाशन से जुड़े हुए हैं,तो आकाशवाणी रांची से समाचार वाचन एवं उद्घोषक के रुप में भी जुड़ाव है। लेखन में आपकी विधा कविता ही है।
सम्मान के रुप में गंगाप्रसाद कौशल पुरस्कार और कादमबिनी क्लब से पुरस्कृत हैं। ब्लाॅग पर लिखते हैं तो,विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा रेडियो से भी रचनाएं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज को कुछ देना है
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Thu Dec 14 , 2017
जीवन पथ पर प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन कई छोटे-बड़े कार्यों को पूरा करना होता है। कई कार्य साधारण होते हैं तो कई आपके जीवन को नई दिशा देते हैं और आपके कर्मठ,प्रतिभा सम्पन्न एवं यशस्वी होने की गवाही देते हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में सफलता पाना चाहता है अथवा […]