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आसान नहीं होता
सांसारिकता में बंध
तुम्हें रचना,
फिर भी मैं प्रयास
करती हूँ,
हे साहित्य!
मैं तुम्हें आत्मसात
करती हूँ।
मिले हो ईशाशीष से,
तुम्हें प्रीत का मुधरतम्
गीत मान
मैं तुम्हें काव्यसात्
करती हूँ,
हे साहित्य!
मैं तुम्हें आत्मसात
करती हूँ।
हाँ प्रेमासक्त हुई तुम
संग,मैं प्रेम शंख का
निनाद् करती हूँ,
मैं तुम्हें विख्यात
करती हूँ,
हे साहित्य!
मैं तुम्हें आत्मसात
करती हूँ।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।
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Sat Dec 2 , 2017
#हिन्दी के शोधार्थी,भाषासारथी,लेखक आदि प्रतिभाओं का हुआ सम्मान #रंगारंग हिंदी-कश्मीरी प्रस्तुतियों से लुभाया विद्यार्थियों ने श्रीनगर। घाटी में हिन्दी के विकास व विस्तार के लिए कार्यरत संस्था ‘वादीज़ हिंदी शिक्षा समिति’ (पंजी.) श्रीनगर ने ‘मातृभाषा उन्नयन संस्थान’ (पंजी.) इंदौर व ‘आकाशवाणी केंद्र श्रीनगर’ के साथ मिलकर बुधवार को टैगोर हॉल […]