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विवाह इस मानव जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है और एक सामाजिक दायित्व भी है। यह प्रेम अनुबंध दो मनुष्यों यानि पुरुष एवं स्त्री के परस्पर सहयोग और सहभागिता से आजीवन निभाया जाता है। सफल एवं सुखी वैवाहिक जीवन के कुछ नियम और शर्तें होती हैं,जिनका पालन दोनों के लिए अनिवार्य है।
प्रेम का यह अनूठा संगम,समर्पण और विश्वास की नींव पर ही टिका रहता है।
माना कि इतना आसान नहीं होता कि एक परिवेश में पालन-पोषण होने के बाद एकदम नए,अनजाने परिवेश में स्वयं को समाहित करना,किंतु यदि मानसिक क्षमताएं विकसित हैं तो बहुत कठिन भी नहीं है।
ऐसा भी नहीं है कि,पहले जब संयुक्त परिवार में सब रहते थे तो वैचारिक मतभेद और वैमनस्यता नहीं थी,लेकिन वो सारे मतभेद परिवार में ही सुलझा लिए जाते थे। हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से समझता था। परिवार की मान-मर्यादा सर्वोपरि मानी जाती थी।
त्याग,तपस्या,सहयोग,तृप्ति,परंपराओं का पालन,जहां है,वह घर स्वर्ग है। आज विवाह शारीरिक और भावनात्मक आवश्यकता नहीं रही है,इसका सामाजिक रूप भी विकृत हो गया है। ‘लिव इन रिलेशनशिप’ ने इस संबंध पर और प्रहार किया है। आज के युवा जिम्मेदारी और बंधनों से मुक्त रहना चाहते हैं। शिक्षा प्राप्त करके घर से दूर भौतिकता में लिप्त हो गए हैं। परिवार में रहना उन्हें घुट-घुट के रहना लगता है। सेवा,समर्पण और सहानुभूति उनके हृदय में नहीं रह गई है।
माता-पिता के साथ छोटी जगह पर जीवन बिताने वाले को,मित्र ही पिछड़ा या जिंदगी की दौड़ में हारा हुआ मानते हैं।
अब समस्या यह है कि, वैवाहिक जीवन अल्प समय में ही टूटने लगे हैं। बिखराव का दंश झेलते तो दोनों ही हैं,लेकिन बुरा प्रभाव सिर्फ बच्चों पर पड़ता है। एकाकी अभिभावक बच्चों को पूरे संस्कार नहीं दे पाते हैं।
बिखराव के दौरान दोनों ही सहानुभूति खोजते हैं और जहां भी वह मिलती है, वहीं झुकाव बढ़ जाता है। कई बार तो उनके साथ जान-बूझकर खेल खेला जाता है और कमजोर पक्ष का इस्तेमाल कोई तीसरा ही कर लेता है।
खैर,कभी भी जब विवाह की जिम्मेदारी आती है,तो सबसे पहले पारिवारिक पृष्ठभूमि का कठोर जायजा ले लेना चाहिए। लड़की या लड़के,दोनों को ही पसंद करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
बचपन से ही बच्चों क़ो प्रेम,समर्पण, त्याग तथा सहयोग की भावना सिखाना चाहिए। बिखराव की सोच को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। दोनों पक्षों को वार्तालाप करके ही समझाना चाहिए। इसका कारण यदि दहेज है,तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं करना चाहिए। वो व्यक्ति कभी भी संतुष्ट नहीं होगा। ऐसे बर्ताव से तो अलगाव ही बेहतर है।
वैवाहिक जीवन में यदि अवैध संबंध कारण बन रहे हैं और बातचीत से भी नहीं सुलझे,तो अलगाव ही बेहतर है।मारा-पीटी भी सहनीय नहीं है। बड़ों की बात मानकर,मनमुटाव खत्म हों तो ठीक है,वरना आत्मसम्मान और आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर हो जाएं। यह सारी बातें लड़की के लिए ही कही हैं,पर
इसके विपरीत आज लड़के भी दबाव का शिकार हो रहे हैं। मेरा पक्ष निश्चित रूप से अलग होने के लिए नहीं है,बल्कि मेरा मानना है कि दिल जुड़े रहें,मन मिले रहें। जीवनसाथी के साथ अंतिम सांस तक निभाया जाए और मन,कर्म और वचन से आजीवन प्रेम से रहें।
#पिंकी परुथी ‘अनामिका’
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।
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