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जीवन में मुझे कुछ शब्दों से काफी नारजगी मिली,जो कभी पूरा हुआ ही नहीं,भले उसे किसी तरह उपयोग किया जाए। अगर हुआ भी तो सिर्फ भाग्यवालों का ही। जैसे-रिश्ता,ज़िसमें कभी-न-कभी मनमुटाव आ ही जाता है। कैसा भी रिश्ता हो-माँ से बेटे का,पिता से बेटे का, चाचा से भतीजा से,भाई से भाई का, बहन से भाई का और प्रेमी से प्रेमिका का रिश्ता। हाल ही में बहुत सारी घटनाएं मीडिया से देखने-सुनने को मिली,जिसमें आरुषि तलवार के माँ-बाप का रिश्ता भी शामिल है। इसी प्रकार प्यार य़ा प्रेम का रिश्ता जो जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है,ज़िसका जीवन में सबसे ज्यादा एवं खास स्थान है,वो बिरले ही पूरा होता है। खास तौर से देखा जाए तो यह अधूरा ही होता है। जैसे प्रेमी-प्रेमिका, माता-पिता,भाई-बहन इस आधुनिकता में अधूरा रिश्ता है। यह एक शौक भी हो गया है,जैसे-लैला मजनूं का रिश्ता,शीरी- फरहाद का आदि। अगला जन्म ले ले तो भी ज़िन्दगी में ये सपना तो कभी-किसी का पूरा हुआ ही नहीं,क़्योंकि अक्सर सुनने में आता है कि,ये इतने दिन ही जीवित रहे। ये सोच रहे थे,पर पूरा नहीं कर पाए। ये करने गए थे पर चल बसे। किताब लिख रहे थे अधूरी छोड़कर चल बसे,इस प्रकार की अनेक बात सुनने को मिलती है। इसका तात्पर्य यही ना,कि ज़िन्दगी में किसी का स्वप्न पूरा नहीं हुआ है। ४ बच्चों में अक्सर सुनने को मिलता है कि मेट्रिक या इंटर का परीक्षा फल अच्छा नहीं आया तो आत्महत्या कर ली,य़ा सरकारी नौकरी की तैयारी करता था। मेहनत करने पर भी जब अच्छा परिणाम नहीं आया य़ा ज़िसमें चाहा,उसमें चयन नहीं हुआ तो
आत्महत्या कर ली। ये नौजवानों,छात्रों में हमेशा सुनने को मिलता है,जैसे डॉ. कलाम ‘विजन-२०२०’ देखना चाहते थे, रावण,स्वर्ग में सीढ़ी लगवाना चाहता था, दामिनी ज़िन्दा रहकर चिकित्सक बनना चाहती थी,और अनेक विद्यार्थी जो हर साल मई-जून में आत्महत्या करते हैं तो कुछ अप्रैल में। कुछ मेट्रिक-इंटर के परिणाम के बाद और कुछ कर्मचारी चयन सेवा के परिणाम के बाद दिल्ली य़ा इलाहाबाद के ‘डेथ ऑफ रिवर’ में मिलते हैं। अंतिम है वो है फरिश्ता,ज़िससे मिलना हर कोई चाहता है लेकिन कोई मिल नहीं पाता है। आम इंसान से लेकर साधु-संत तक लेकिन किसी को मिले नहीं,मिले उसी को जिसने इस आधुनिक जीवन से मुंह मोड़ा। जैसे-स्वामी विवेकानन्द,रामकृष्ण परमहंस इत्यादि, अन्यथा तो सभी साधु-संत झूठ का ज़रिया बनाकर लोगों का शोषण ही कर रहे हैं।
#रुपेश कुमार
परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।
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