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नन्हीं आंखें,बहरे कान,
ढूँढ रही अपनी पहचान।
तन पर मैले-फटे कपड़े ,
धूप रोकता नहीं मचान॥
कहते महक रहा जहान,
गरीबी,बेबसी से अंजान।
पढने-लिखने से वंचित,
कमाने चली नन्हीं जान॥
क्योंकि घर में नहीं धान,
माँ बीमार,पिता बेजान।
पढ़ने-लिखने से पहले,
रखना है हमें इनका ध्यान॥
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।
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