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हाँ साधारण-सी पानी हूं मैं,
व्यर्थ पूजते हो तुम मुझको
हाँ,अकारण-सी बहती हूं मैं,
पवित्रधार क्यों कहते मुझको।
न मैं माँ हूं…न कोई देवी,
फिर भी सबके कष्टों को सहती
क्यों कहते तुम माँ हो मुझको,
जब मेरी पीड़ा न तुमको दिखती।
गंगाजल तो हिमकल जल है,
पर मेरा जल क्यों गंदाजल है?
सोच के देखा है…क्या तुमने,
कितनी गलतियाँ छुपाती हूं मैं।
रोज सुबह मल बहा के जल में,
शाम को तट पे तुम्हें पाती हूं
क्यों करते हो?? ढोंग पूजकर,
मेरी गरिमा का हास्य बनाकर।
सोचूं जलप्राणी जब मृत पाती हूं,
जीवनदायिनी कह-कहकर मुझको
मेरा जल तुमने छिन-भिन्न किया।
अब तो स्वयं को दोषी कहकर,
क्यों अवतरित हुई कह देती हूँ
पुण्यदायिनी क्यों कहते हो मुझको
जब हर पापों को मेरे तट करते हो।
नाम नर्मदा,गरिमा थी मेरी पर,
तुम तो बेटे होकर के भूलते हो॥
#रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
परिचय : रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के के नर्मदापुरम् संभाग के होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l
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