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दैनिक का यही निकला परिणाम अंत में,
दिन डूब गया हाथ लगी शाम अंत में।
दुनिया से दिल लगाने का अंजाम यह हुआ,
फोकट में हो गए हम बदनाम अंत में।
विश्वास किया जिस पर हद से भी जियादा,
इज्जत लिया उसी ने सरेआम अंत में।
आंखों में आंसूओं का समंदर छलक उठा,
अपनों का पढ़ा जब-जब पैगाम अंत में।
दुर्भाग्य अपनी तुमको मैं कैसे बताऊं,
मिलना बहुत कठिन है आराम अंत में।
जिस काम को दिल से कभी करना नहीं चाहा,
करना पड़ा है मुझको वही काम अंत में।
इतना ही दर्द आखरी दम तक अगर रहा,
निकलेगा नहीं मुख से कभी राम अंत में॥
#डॉ. कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
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