दुधारी इश्क़ 

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avnesh
मैं जितना रोकना चाहूँ वही हर बार होता है।
करे मुझसे जो नफरत है उसी से प्यार होता है॥
समझ पाया नहीं अब तक खुदा तेरी खुदाई को,
उसे इनकार होता है मुझे इकरार  होता  है॥
दुधारी इश्क़ खंजर है शिकारी खुद ही कट जाए,
किया जो इश्क़ है तुमने बहुत बेकार  होता है॥
बड़ी मुश्किल हमारी है,उसे हम मिल नहीं पाते,
सदा रहती है वो घर पे,दिन इतवार होता है॥
मिला है दर्द जो मुझको तुम्हारे प्यार में साजन,
कभी इस पार होता है,कभी उस पार होता है॥
न देखो तुम मुझे जानम,यूँ तिरछी  निगाहों से,
नज़र का तीर ये मेरे जिगर के पार होता है॥
तुम्हारा हक़ है सांसों पे,तुम्हारे नाम ये जीवन,
जिसे हम प्यार  करते  हैं,वही हक़दार होता है॥
मुझे तुम कह रहे इक आँख का,पर बात ये सुन लो,
जहाँ हो भीड़ अंधों की,यही सरदार होता है॥
जहाँ होती दुआएं ये माँ की और हो डांट पापा की,
वही घर स्वर्ग होता है,सुखी संसार होता है॥
                                                   #अवनेश चौहान ‘कबीर’
परिचय: अवनेश चौहान ‘कबीर’ की जन्मतिथि-१ जुलाई १९८५ और जन्म स्थान-चन्दौसी है। आप उत्तर प्रदेश राज्य के शहर-चन्दौसी(जिला-संभल) निवासरत हैं। स्नातक तक शिक्षित श्री चौहान का कार्यक्षेत्र-वित्त है। आप अधिकतर दोहे रचते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि है।

matruadmin

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