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जाडे का निशीथ समय
कडाके की ठंड
घना कुहासा
पंछी भी घोसले से बाहर
नहीं निकल रहे थे।
ठिठूरती जा रही थी
हाड-माँस-पेशियां,
शाम का जलाया हुआ अलाव
राख हो चुका था।
ओढ के काली कम्बल
नभ में छुप गयें थें सारे तारे
चाँदनी भी आज
धरती से बात करने
नहीं आ रही थी।
धूमिल होती जा रही थी
टार्च की रोशनी
राहगीर को भी
रास्ते नहीं सूझ रहे थे।
सियारों का हूँआं हूँआं
भी सुनाई नहीं दे रहा था।
और न ही
नजर आ रहे थे
दूर-दूर तक
भों-भों करता कुत्तों का दल
एक निर्जन खेत में
में अकेला
सींच रहा था
गेहूँ की फसल
#दीपक शर्मा
परिचय: दीपक शर्मा की जन्मतिथि-२७ अप्रैल १९९१ है। आपका स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है,जबकि वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहते हैं बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) तक शिक्षित श्री शर्मा फिलहाल एम.ए. में अध्ययनरत(हिंदी)हैं। आप कविता,लघुकथा,आलेख सहित समीक्षा भी लिखते हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक जुड़े हुए हैं।आपकी लेखनी का उद्देश्य- देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।
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Fri Mar 9 , 2018
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