हवा,घटा
नभ,चन्द्र चीर
उड़ते पक्षी
नदिया का नीर,
जब रह-रहकर
छू जाते हैं…
कुछ शब्द यूँ ही,
गिर जाते हैं…l
उदधि हिंडोले
सूरज की पीर,
परवत का पौरूष
धरती का धीर,
जब रह-रहकर
छू जाते हैं…
कुछ शब्द यूँ ही
गिर जाते हैं…l
नव कोपल की
शैशव-सी गात,
हिलती शाखों की
झनकीली बात,
जब रह-रहकर
छू जाते हैं…
कुछ शब्द यूँ ही
गिर जाते हैं…l
उबड़-खाबड़
पथरीले पाथ,
मैं,तुम और
कविता का साथ,
जब रह-रहकर
छू जाते हैं…
कुछ शब्द यूँ ही
गिर जाते हैं…l
भौतिकता के
भड़कीले भेद,
कुछ आत्मबोध
करवाते खेद,
जब रह-रहकर
छू जाते हैं…
कुछ शब्द यूँ ही
गिर जाते हैं…ll
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।