गरुड़ बुलबुल क्यों बन गया ?

0 0
Read Time3 Minute, 27 Second

vaidik

भारत का भद्रलोक अब ऐसा लगता है कि अंग्रेजी के पिंजरे के बाहर झांकने लगा है। जापान के साथ मिलकर भारत जो बुलेट ट्रेन बना रहा है, उसके कर्मचारी, अधिकारी और इंजीनियर अब जापानी भाषा सीखने में लगे हुए हैं। उन्हें प्रशिक्षण के लिए जापान जाना है और बाद में कुछ समय तक जापानियों के साथ मिलकर उस बुलेट ट्रेन को चलाना है। उन्हें पता चल गया है कि उनका काम अंग्रेजी से नहीं चलेगा। उन्हें जापानी सीखनी ही पड़ेगी। इसीलिए आजकल हर दूसरे दिन शाम को एक घंटे की जापानी भाषा की कक्षा में सारे अधिकारी बैठकर जापानी बोलने का अभ्यास करते हैं। जापानी ऐसी नौंवी भाषा है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाती है। उसकी लिपि कठिन है लेकिन भाषा को सीखना उतना कठिन नहीं है। भारतीय रेल-अधिकारी कुछ ही दिनों में अब थोड़ी-थोड़ी जापानी समझने और बोलने लगे हैं। जो भी अधिकारी इस भाषा को ठीक से नहीं सीख पाएगा, वह प्रशिक्षण के लिए जापान नहीं भेजा जाएगा। यदि भारत सरकार इसी तरह के नियम अन्य प्रमुख विदेशी भाषाओं के लिए बना दे तो भारत के विदेश व्यापार और कूटनीतिक व्यवहार में जमीन आसमान का अंतर आ जाएगा। दुनिया के सभी देशों के साथ हमारे व्यापार और कूटनीति की एक मात्र भाषा अंग्रेजी है। उस-उस देश की भाषा नहीं जानने के कारण हमारे व्यापारी ठगे जाते हैं और हमारे राजनयिक अयोग्य सिद्ध हो जाते हैं। मैंने दर्जनों देशों में जाकर देखा है कि हमारे राजदूत उस देश की भाषा ही नहीं जानते, जिसमें उन्हें नियुक्त किया जाता है। मुझे कई बार चीन और जापान जाते समय जहाज में अपने व्यापारी बताते हैं कि वहां के दुभाषियों को उन्हें काफी मोटी फीस देनी पड़ती है और चालाकीभरे अनुवाद के कारण कई बार उनकी ठगाई भी हो जाती है। दुनिया के सभी शक्तिशाली ओर मालदार देशों में उनका काम उनकी भाषा में ही होता है लेकिन भारत-जैसे पूर्व-गुलाम देशों में अभी तक वही गुलाम पिछड़ापन चला आ रहा है। हमने अंग्रेजी को आज भी भारत की राष्ट्रभाषा और दुनिया की विश्व भाषा बना रखा है। इसलिए हम नकलचियों का देश बन गए हैं। विदेशी भाषा के तौर पर अंग्रेजी के इस्तेमाल में कोई बुराई नहीं है लेकिन उसके पिंजरे में खुद को बंद रखने के कारण भारत जो उड़ान भर सकता था, आज तक नहीं भर पाया। गरुड़ बुलबुल बन गया है।

#डॉ. वेदप्रताप वैदिक

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

"टिफीन और डिनर"

Mon Jul 30 , 2018
वही डेढ़-दो बज रहे होंगे।कबाड़ी के दुकान में काम कर रहा दुखना मालिक से बोला-“मालिक खाए खातिर 50₹ दे देते।” मालिक-“खाना…..! होटल में खाएगा! घर से टिफीन लेकर क्यों नहीं आया?” दुखना-“मालिक, कनिया के बोखार लागल रहै खाना नै बनैलकै।” मालिक-बहाना छोड़, आ ई बता कि एक टाईम 50₹ का […]

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।