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मुद्दतें गुज़र गई,तफ्सील से बतियाए।
हुई इनायत-ए-खुदा,कि आखिर आप आए॥
शाम-ए-ग़ज़ल सुनाऊँ या,हाल-ए-दिल सुनूं तुम्हारा।
नज़र-ए-बयां करुं या,दिखाऊँ यह दिलनशीं नज़ारा॥
तेरी मासूमियत पर,मेरी ख़ुशी मुस्कुराए।
मुद्दतें गुजर गई,तफ्सील से बतियाए॥
हुई इनायत-ए-खुदा,कि आखिर आप आए।
आलम गुज़रे ज़माने का,न कभी मज़लिस नाम हुआ।
मिटी कभी तन्हाई तो,मैं महफ़िल में भी बदनाम हुआ॥
तेरे बिन वक्त जैसे,मुझे वहीं ठहरा पाए।
मुद्दतें गुज़र गई,तफ्सील से बतियाए॥
हुई इनायत-ए-खुदा,कि आखिर आप आए।
हुस्न-ए-रौनक भी कहीं,बस खोई-सी मुझे लगती है।
गम-ए-जुदाई में,आप भी डुबोई-सी मुझे लगती है॥
आओ मिल जाएं कि शब रंगीन हो जाए।
मुद्दतें गुज़र गई,तफ्सील से बतियाए॥
हुई इनायत-ए-खुदा,कि आखिर आप आए॥
#दुर्गेश कुमार
परिचय: दुर्गेश कुमार मेघवाल का निवास राजस्थान के बूंदी शहर में है।आपकी जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी है। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ली है और कार्यक्षेत्र भी शिक्षा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। विधा-काव्य है और इसके ज़रिए सोशल मीडिया पर बने हुए हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी की सेवा ,मन की सन्तुष्टि ,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है।
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