अहा ये बरसाती मौसम
सामने तुम
दिल में मचलते अहसास
पेग दो बीयर के
लो ये शमा
कोकटेल ही बन गया..!
उस पर
तुम्हारी आँखों से बहता प्यार
बड़ी ही नर्मी से
स्पर्शती है तुम्हारी निगाहें मुझे
कि गुदगुदा ही जाती है..!
हौले से दस्तक देती है
मन की दहलीज़ पर
बजने लगती है सारंगी
मंद-मंद मुस्कुराती है..!
हम हया के मारे
मर जाते है
ये तीर चलाए जाती है
हम सुध-बुध खोए जाते है
पलकें हम कैसे उठाते कहो
ये सीधे वार जो करती है..!
तेरी चंचल चोर बातूनी अँखियाँ
काबू में रखो बड़ी तूफ़ानी है
एक पेग का ये असर
क्यूँ इतना नशा बरसाती है
बस एक नज़र कोई देखे इसे
समूचा बहा ले जाती है..!
एक बारिश बाहर बरसे
दूजी तेरी अँखियों से
कोई कैसे संभाले दिल को
कोई कैसे संभाले दिल को। ।
भावना ठाकुर