मुद्दतें गुज़र गई,तफ्सील से बतियाए। हुई इनायत-ए-खुदा,कि आखिर आप आए॥ शाम-ए-ग़ज़ल सुनाऊँ या,हाल-ए-दिल सुनूं तुम्हारा। नज़र-ए-बयां करुं या,दिखाऊँ यह दिलनशीं नज़ारा॥ तेरी मासूमियत पर,मेरी ख़ुशी मुस्कुराए। मुद्दतें गुजर गई,तफ्सील से बतियाए॥ हुई इनायत-ए-खुदा,कि आखिर आप आए। आलम गुज़रे ज़माने का,न कभी मज़लिस नाम हुआ। मिटी कभी तन्हाई तो,मैं महफ़िल में […]