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बच्चे मन के सच्चे,
नहीं उनसे सच्चा कोई।
बच्चों का दिल होता,
गंगाजल-सा पावन।
बच्चों की तो हर बात ही,
होती निराली है।
वे तो होते हैं जैसे,
कोई दमकता हीरा।
नहीं मन में कोई उनके,
अपना या पराया होता।
उनकी तो अपनी,
दुनिया ही अलग होती है।
बच्चे मन के सच्चे,
न कोई झूठ या फरेब उनमें,
न बड़ों-सी कोई चालाकी।
दिल पिघल जाता है क्षण में,
पल भर की होती नाराजी।
नहीं दिल में रखते बच्चे,
कोई चीज संभाले हुए।
वे तो जैसे कच्ची मिट्टी,
बस उसके समान होते हैं।
उनको तो बनाते,बिगाड़ते
एक हद तक बड़े ही हैं।
बच्चे तो मन के सच्चे होते हैं।
#डॉ.सरला सिंह
परिचय : डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ है पर कर्म स्थान दिल्ली है।इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि) और बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) भी किया है। आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में हैं। 22 वर्षों से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ.सरला सिंह लेखन कार्य में लगभग 1 वर्ष से ही हैं,पर 2 पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। कविता व कहानी विधा में सक्रिय होने से देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),दो सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि पर कार्य जारी है। अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं।
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Tue Nov 14 , 2017
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