रेल

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rajkumar shukl
देखो बिना टिकट का खेल,
छुक-छुक करती आई रेल।
लाल घघरिया पहने बिल्ली,
बैठ  गई  जाने  को  दिल्ली।
दौड़ा-दौड़ा  आया भालू,
रेल हो गई तब तक चालू।
बड़ी जोर से चिल्लाया बंदर,
चाचा  जल्दी  बैठो  अंदर।
ज्योंज्यों भालू कदम बढ़ाता
इंजन आगे बढ़ता जाता।
तेज दौड़कर भरी छंलाग,
उलझ  गई  पटरी  में टाँग।
डरकर के आँखों को मींचा,
तेजी  से  पैरों  को  खींचा।
पर अजीब किस्मत का खेल,
धड़-धड़ करती निकली रेल।
भालू  खड़ा  रहा गुम-सुम,
देख के अपनी गायब दुम।

                                                       #राज कुमार शुक्ल ‘राज’

परिचय: राज कुमार शुक्ल ‘राज’ की रचनाएं कई पत्रों और साहित्यक पत्रिका में गजल एवं कविता के रुप में छपी हैं। सम्मान के रुप में औरैया में न्यास द्वारा सर्वश्रेष्ठ गजलकार सम्मान २००० में तथा स्मृति संस्थान द्वारा २००१ सहित नगर पालिका परिषद द्वारा आयोजित शारदोत्सव प्रदर्शनी में प्रति वर्ष सम्मानित होते रहे हैं। अखिल भारतीय पुस्तक प्रचार समिति ने भी आपको २००७ में सम्मानित किया है। इसके अलावा मुक्तक मंथन सम्मान,प्रतिक्रिया श्री सम्मान,मुक्तक गौरव सम्मान,सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान तथा दीपशिखा सम्मान के साथ ही काव्य सागर सम्मान भी मिला है। आप सोशल मीडिया में सक्रिय होकर कई समूहों के संस्थापक संचालक हैं। श्री शुक्ल की जन्मतिथि-२५ जून और  जन्म स्थान -औरैया है। वर्तमान में औरैया में सत्तेश्वर मुहाल साहित्य भारती पुस्तकालय के पास (उत्तर प्रदेश) हैं। बी.ए. शिक्षित श्री शुक्ल का कार्यक्षत्र-सामाजिक क्षेत्र-औरैया ही है। लेखन विधा -ग़ज़ल और गीत है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी का सम्मान बढ़ाना है। 

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