मन के कोने में भी तुम एक दीप जलाना सीख लो,
आग में तन को तपाकर फिर गलाना सीख लो।
फूलों की खुशबू मिलेगी ज़िन्दगी की राह में,
पहले काँटों की डगर पर पग चलाना सीख लो।
क्या हुआ जो रात का घनघोर अँधेरा छा गया,
जुगनुओं-सा खुद को थोड़ा टिमटिमाना सीख लो।
रातभर बाती ने जलकर तम को रोशन है किया,
दूसरों के घावों पर मरहम लगाना सीख लो।
गर नहीं अंधियारों में ये दीपमाला तो भी क्या,
तारों के उजियालों में ही मुस्कुराना सीख लो।
नागमणियों जैसी होगी तेज आभा ज़िन्दगी,
पहले थोड़ा-सा ‘नरेन’ तुम विष खाना सीख लो।
#नरेन्द्रपाल जैन,उदयपुर (राजस्थान)