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रह-रहकर स्मृतियाँ कुरेदती हैं
कभी मन्द गति,कभी बढ़ते आवेग में।
सूना है मन का निलय,
जाने कहाँ हुआ विलय
बात-बात में नाम जुबाँ पर॥
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कभी खुशी से,कभी गीली कोरों संग,
चाहता है मन बीते पल वापस मिल जाएं।
कभी तुम,कभी यादें रहे संग,
सूरत-सीरत सब एक जैसे सखी
दन्तरिम मुस्कान वैसे ही हर पल॥
.
मिलता सुकून जब मिलते तुम्हारे कुछ पल,
मानो डूबता ह्रदय हिलोरे ले रहा किनारे पर।
आदत पुरानी आज वापस लौटी,
परेशान करने की उच्छश्रृंखलता
ह्रदय की रग-रग में शामिल हुई॥
तमाम अरसों की मायूसी पल में भागी,
जब भी वार्तालाप हुआ सखी तुमसे ज्यादा।
मिलना-बिछड़ना शाश्वत नियम,
दुनिया में सब कुछ है एक वहम
कल और आज में नहीं कोई गम॥
रिश्तों की पुरजोर कोशिश में,
बेहतरीन ‘तुम’॥
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।
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