तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार …..

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kirti rana
दीपावली वाले महीने में ही आय कर विभाग को ज्वेलर्स सहित अन्य कारोबारियों के संस्थानों की जांच करने की याद आती है।विक्रय कर विभाग को बर्तन व्यापारियों के व्यवसाय में गड़बड़ी ढूंढने का मौका मिलता है। ग्यारह महीने तक फूड विभाग जिन मिठाई नमकीन वालों से पैकेट लेकर साहब बहादुरों के मेहमानों के किचन तक पहुंचाता है बस इसी एक महीने में उसे अचानक सपना आता है कि ये सब तो मिलावटखोर हैं। दीपावली वाला महीना धंधे-व्यापार वाला रहता है और इसी महीने में सरकारी विभागों को दिव्य दृष्टि मिलती है और वे अपने होने का अहसास कराने के लिए लामबंद होकर निकल पड़ते हैं। साल के बाकी नौ दस महीने तो सब मिलीभगत चलती रहती है।
कुछ ऐसा ही मामला राम मंदिर से जुड़ा भी मान सकते हैं। चुनावी साल में ही संघ से लेकर संतों तक को सपने आने लगते हैं। एक प्रधानमंत्री हुए पीवी नरसिंहराव जिनकी मौन स्वीकृति नहीं होती तो कथित बाबरी ढांचा ध्वस्त  करने की भाजपा की साजिश अंजाम तक नहीं पहुंचती। दूसरे प्रधानमंत्री हुए राजीव गांधी, विरोधी उन्हें चाहे जितना कलंकित करें लेकिन मनमसोस कर यह तो स्वीकारते ही हैं कि राम जन्मभूमि स्थल का ताला तो उन्हीं के कार्यकाल में खुल सका था। मनमोहन सिंह के दस साल में तो कुछ हुआ नहीं, लेकिन राम का गुणगान करते हुए लाल किले पर तिरंगा फहराने का गौरव प्राप्त करने वाले पीएमजी के इन चार सालों में भी पत्ता नहीं खड़का । पीएमजी  के लिए बधाई गीत गाने वाले भी इस सवाल का आज तक जवाब नहीं पा सके हैं कि एट्रोसिटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सिर पर बैठ जाने का साहस दिखा सकते हैं तो राम मंदिर के मामले में क्यों अल्पसंख्यकों के हितैषी बने रहने का नाटक किया जा रहा है? जबकि इन चार सालों में देश का अल्पसंख्यक वर्ग भी मानसिक रूप से तैयार हो चुका है कि राम मंदिर राग का सरकार जैसा हल चाहे निकाल ले, खुद बाबर के वंशज तक कह चुके हैं कि सरकार निर्माण शुरु तो करे पहली सोने की ईंट हम रखेंगे।सरकार मंदिर निर्माण की दिशा में तो कुछ कर नहीं पाई हिंदू हित रक्षकों में से एक प्रवीण तोगड़िया से जरूर अपने को अलग कर लिया।
कल तक सरकार की तरह आरएसएस भी मंदिर मामले में  कोर्ट के फैसले का राग अलाप रहा था। विजयादशमी से  नया गीत गूंजने लगा है कि मंदिर बनाने के लिए कानून बनाए सरकार।ये अचानक बोल कैसे बदल गए क्या इसलिए कि विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव हैं।
अब चूंकि संघ ने आदेशात्मक मांग की है तो अहंकार का पर्वत पिघलना ही है। संघ की इस मांग को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि इन चार सालों में केंद्र सरकार ने देश की तरक्की वाली योजनाओं के जो पर्वत खड़े किए वो चने के झाड़ पर चढ़ने जैसे ही साबित हुए।संघ की नजर में वो महिमा गान भी झूठा साबित हो रहा है कि मेरा देश बदल रहा है।बदलाव की शुकुआत यूपी की प्रयोगशाला से हुई है अगले लाल कुंभ है और इलाहाबाद को प्रयागराज का रंग चढ़ाकर संत समाज के पाद पूजन की शुरुआत हो गई है।अब जब खुद आरएसएस मांग कर रहा है कि सरकार राम मंदिर के लिए कानून बनाए तो सरकार की हिम्मत नहीं कि इस मनपसंद मांग की अनदेखी कर सके।इस दिशा में पहल करके प्रयागराज वाले पादपूजन से प्रसन्न संत समाज को इच्छित दक्षिणा भी मिल जाएगी और जो राहुल गांधी एंड पार्टी संघ के सिंहासन से हिंदुत्व वाला आसन खींचने के प्रयास कर रही है उसे भी मुंहतोड़ जवाब मिल जाएगा।
आरएसएस को हर चार छह महीने में सफाई देनी पड़ती है कि सरकार का रिमोट कंट्रोल हमारे हाथ में नहीं रहता है। संघ की मांग पर कानून बना कर सरकार बताएगी कि सरकार बात सुनती सबकी है लेकिन गौर उन्हीं मांगों पर करती है जो आदेश के आवरण में लिपटी होती हैं। इसी रामरक्षा स्त्रोत से मोदी-शाह की जोड़ी का 2019 में फिर सत्ता में बने रहने का संकल्प पूरा हो सकता है।भारत को जब विश्व गुरु का सम्मान दिलाने का दायित्व पीएमजी के कंधों पर हो, विश्व में विकास की राजनीति का ढिंढोरा पीटा जा रहा हो तब तो राम मंदिर बन ही जाना चाहिए। आखिर संघ भी कब तक राम नाम की घुट्टी पिला पिला कर दुख दर्द का निदान करता रहेगा। वैसे भी अगला मुद्दा मोटाभाई ने तलाश लिया है कि रोहिंग्याओं और यहां वहां से आए घुसपैठियों को देश से बाहर खदेड़ना हो तो मप्र से लेकर बाकी विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की सरकार बनने दो, राज्य के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे चुनाव में जीत का कारण बनें तो पूछना चाहिए कि फिर पंद्रह साल से सत्ता में रहे मुख्यमंत्री इतनी योजनाओं के लिए क्यों बार बार कर्ज लेते रहे।
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भगवान राम का यह स्कैच बनाया है जयपुर के पत्रकार-चित्रकार विनोद भारद्वाज ने( उनकी फेसबुक वॉल से साभार)
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#कीर्ति राणा

परिचय:कीर्ति राणा,मप्र के वरिष्ठ पत्रकार के रुप में परिचित नाम है। प्रसिद्ध दैनिक अखबारों के विभिन्न संस्करणों में आप इंदौर, भोपाल,रायपुर,उज्जैन संस्करणों के शुरुआती सम्पादक रह चुके हैं। पत्रकारिता में आपका सफ़र इंदौर-उज्जैन से श्री गंगानगर और कश्मीर तक का है। अनूठी ख़बरें और कविताएँ आपकी लेखनी का सशक्त पक्ष है। वर्तमान में एक डॉट कॉम,एक दैनिक पत्र और मासिक पत्रिका के भी सम्पादक हैं।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।