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आप मैं हम,
तम दूर भगाएं
दीप जलाएं।
अज्ञान रूपी,
अंधकार मिटाएं
दीप जलाएं।
न्याय के लिए,
एक पग बढ़ाएं
दीप जलाएं।
हम भी खुश,
रहे न वो भी दुखी
कर जतन।
झोपड़ी को भी,
करें हम रोशन
दीप जलाएं।
करें रोशन,
उस बस्ती को हम
जहाँ है तम।
ऐसा भी कुछ,
कर गुजरें हम
दूर हो तम।
प्रकाश ज्ञान,
घर-द्वार फैलाएं
दीप जलाएं।
आर्यवृत को,
विश्वगुरू बनाएं
दीप जलाएं।
सर्वत्र सुख,
प्रेम पुष्प खिलाएं
दीप जलाएं।
#गणेश मादुलकर
परिचय: गणेश मादुलकर का साहित्यिक उपनाम-मुसाफ़िर है। इनकी जन्मतिथि -५ सितम्बर १९९७ तथा जन्म स्थान-गांव ग्राम बम्हनगावं(मध्यप्रदेश)है। शहर हरदा में बसे हुए गणेश मादुलकर अभी विद्यार्थी काल में हैं। यह किसी विशेष विधा की अपेक्षा सब लिखते हैं। आपके दो प्रकाशन आ चुके हैं,जिसमें एक साझा संग्रह है। इनके लेखन का उद्देश्य सामाजिक रूढ़िवादिता पर कटाक्ष प्रहार के साथ ही प्रकृति चित्रण,देश-काल, वातावरण एवं अन्य विषय पर भी लेखन जारी है।
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Fri Sep 8 , 2017
ये रिश्ते… पतवार और सफ़ीने के… बहुत मजबूत और… बहुत कमजोर भी हुआ करते हैं… मुझे तैरना नहीं आता… और भँवर अनंत है… विस्तृत आकाश में… मैं उड़ना नहीं चाहती… इसलिए कहती हूँ कि ज़िंदगी को… हमवार रहने दो… क्यूंकि मुझे तुमसे नहीं… तुम्हारी आवाज़ की नमी से डर लगता […]