बेटियाँ आँखों का नूर,

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बेटियाँ आँखों का नूर हैं, देश का कोहिनूर हैं

बेटी को नहीं हम अब यूँ ठुकराते हैं
बेटी का होना अब नहीं दुर्भाग्य मानते हैं
बेटी दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती बन आती है
बेटी घर में अमन चैन सुख शान्ति लाती है

बेटियाँ आँखों का नूर हैं, देश का कोहिनूर हैं

आओ मिल करें कलिकाओं का स्वागत
जिनकी महक से अँगना होता सुवासित
क्यारियाँ ख़ुशियों के फूलों से लद जाती हैं
चिड़ियों सी लगें चहकनें फुदकतीं नाचती हैं

बेटियाँ आँखों का नूर हैं, देश का कोहिनूर हैं

वृद्धावस्था की बनी सौगात मन को लुभातीं
नहीं माँगतीं हक़ अधिकार, सर्वस्व लुटातीं
सौभाग्यशाली घर जहाँ बेटियाँ जन्म लेतीं
दोनों ही परिवारों को ये खुशहाल बनातीं

बेटियाँ क्या हैं, ये आँखों का चमकता नूर हैं
मानो ना मानो देश का अनमोल कोहिनूर हैं
देश पर पड़ी जब भी विपदा लड़ीं बन मर्दानी
बेटियों की वंशज लक्ष्मीबाई झाँसी की रानी

प्रो.नीलू गुप्ता विद्यालंकार
कैलिफ़ोर्निया

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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