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दुःस्वप्न,
संबंधित दुःख से, `दर्द` से
जिए जाओ सर्द से।
सदा कोई उलझन
सदा कोई परेशानी।
मिलती तो सही,
खुशी कोई अनजानी
पर नहीं,
कुछ भी नहीं,कहीं भी नहीं।
बस,
?
दर्द से भरी कराहें….
कि सुन न सके,कोई मेरी आहें।
किसी तक न पहुँच सके ये आवाज़,
किसी को दुःख न दे ये दर्दीला साज।
कब….
?
जाने कब…
टूटेंगे इस साज के तार….
कब
?
जाने कब होगा इस दर्द का अंत….
जब भी होगा
होगा दर्द भरे जीवन का उदाहरण जीवंत।
#डॉ.ज्योति मिश्रा
परिचय: डॉ.ज्योति मिश्रा वर्तमान में बिलासपुर(छत्तीसगढ़) में कर्बला रोड क्षेत्र में रहती हैं। आपकी उम्र करीब ५८ वर्ष और शिक्षा स्नातकोत्तर है। पूर्व प्राचार्या होकर लेखन से सतत जुड़ी हुई हैं। प्रकाशन विवरण में आपके नाम साझा काव्य संग्रह ‘महकते लफ्ज़’ और ‘कविता अनवरत’ है तो,एकल संग्रह ‘मनमीत’ एवं ‘दर्द के फ़लक’ से है। कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में कविताएं छप चुकी हैं।आपको युग सुरभि,हिन्दी रत्न सहित विक्रम-शिला हिन्दी विद्यापीठ (उज्जैन,२०१६),तथागत सृजन सम्मान,विद्या-वाचस्पति,शब्द सुगंध,श्रेष्ठ कवियित्री (मध्यप्रदेश),हिन्दीसेवी सम्मान भी मिल चुका है। आप मंच पर काव्य पाठ भी करती रहती हैं। आपके लेखन का उद्देश्य अपनी भाषा से प्रेम और राष्ट्र का गौरव बनाना है।
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Beautiful expression!Very nice..