उसूल गये है लोग

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जीवन मे उगा बबूल गये है लोग
जिना ही अब जैसे भूल गये है लोग
अमन प्यार वफा सब है बस नाम के
बात बात पर चला त्रिशूल गये है लोग।
भिड है झूंड है पर इंसान एक नही
खूदगर्जी मे खूद ही को भूल गये है लोग।
जात धर्म के नाम पर बट गया है आदमी
आखिर बना ये कैसा उसूल गये है लोग।
बोली प्रेम की पशू पक्षी भी समझते है
बेकार की भाषा मे उलझ फिजूल गये है लोग।
हर शास्त्र ने दिया है पैगामे मोहब्बत *अश्क*
हिंसाकर कौन सा धर्म कबूल गये है लोग।

नाम- संजय तांडेकर

साहित्यिक नाम- संजय अश्क
शिक्षा-बीएससी
 पता- पुलपुट्टा(तिरोडी)
जिला-बालाघाट मप्र
प्रकाशन-तेरी मोहब्बत के अश्क और दिल की गहराईयों मे तुम
लेखन का उद्देश्य- जनचेतना

matruadmin

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