भूल गए आज़ाद-भगत को

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rajiv choudhari
कभी राम नाम की धरती थी,
और कृष्ण नाम का राज था
लुप्त हुए जब राम-कृष्ण,
सब अंग्रेजों के हाथ था।
एक दिन ऐसा भी आया,
जब अंग्रेजों का अंत हुआ
यह फिरंगियों का कल था लेकिन, भारतीयों का आज था।
बंद हुआ सब खून-खराबा,
चहुँओर खुशहाली थी
लहराए फिर सभी पेड़ यहां,
हरी-भरी हर डाली थी।
अलख जगाता हर नर-नारी,
खुशी मनाते सभी यहां
क्योंकि,१० कम २०० बरस बाद,
नई भोर जो होने वाली थी।
स्वतंत्रता का वो केसरिया,
हमने जब लहराया था
भारत गाता जन-गण-मन,
और वंदे मातरम नारा था।
फांसी चढ़ गए भगत-गुरु,
सुखदेव भी संग सहारा था
लटक गए फंदे से लेकिन,
इंकलाब ही नारा था।
भारत छोड़ो आंदोलन कर,
चरखा एक चलाया था
एक लाठी के दम पर,
अंग्रेजों का वंश मिटाया था।
महात्मा तो टैगोर ने बनाया,
गांधी उनका नाम था
सूत कातते सत्य बोलते,
अहिंसा उनका काम था।
(राजनीतिक बदलाव)
अब आया नेताराज,
बंद हुए सारे अच्छे काज
नेता सब खुशी मनाते हैं।
यह बैठे खाते मांस,
लेने दें ना सांस
बांस से हुकुम चलाते हैं।
दिन रोज बढ़ें दुष्कर्म,
ये इनके ही कर्म
कुकर्मी हो गए सब नेता।
करें की डेरी बंद खोल दिए,
चौराहे पर ठेका।
ये करें रोज हुड़दंग-शांन्ति भंग,
अकल न तनिक लगा रहे।
ये करें लड़ाई रोज-नोट,
नकली को चला रहे।
भूल गए आज़ाद-भगत को,
जन्मी जब से शराब है
कुर्सी बन गई लक्ष्मी बाई,
‘मत’ बने आज़ाद है,
देशी खाद को खाया यूरिया,
चाय को खाई चरस,
भले लोग देखने अब,
आँखें गईं तरस।
बैंक बन गए नेहरू जी,
और पैसा बना भगत,
इस चंगुल से कोई बचा न
सारा देश भुगत॥
                                                                          #राजीव चौधरी
परिचय : राजीव चौधरी की जन्मतिथि-२ जुलाई १९९५ और जन्म स्थान गाँव- अलीपुर( जिला-भरतपुर)है। वर्तमान में भी भरतपुर (राजस्थान)में ही निवास है। एम.कॉम. तक शिक्षित श्री चौधरी का कार्यक्षेत्र असीमित है। यह अभिनय प्रेमी अभिनेता हैं,इसलिए ब्लॉग सहित सामाजिक क्षेत्र में सभी जगह सक्रिय हैं। लेखन में हास्य, श्रंगार तथा वीर रस इनकी पसंद है। शहीद आजाद भगत बोस संस्थान द्वारा काव्य पाठ, टी.वी. चैनल द्वारा बेहतरीन अभिनय और नगर निगम भरतपुर द्वारा शानदार मंच संचालन के लिए सम्मान प्राप्त किया है। लेखन का उद्देश्य- बेहतरीन रचनाओं द्वारा समाज में मनोरंजन के साथ-साथ जनजागृति लाना है।

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