बदरा से आस…

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sanjay sahu
आस लगाए बैठा हूं तुमसे,
बरसोगे कब,बताए रे बदरा।
सावन बीता सूखा-सूखा पर,
भादो आस,जगाए रे बदरा।
जो था पास मेरे वो खेतों पर,
बैठा हूं सब,लगाए रे  बदरा।
अंतिम आस तुम्हीं हो पर ,
दिल भी,घबराए  रे बदरा।
कहलाता है अन्नदाता पर,
फसल अब,रुलाए रे बदरा।
भूख सभी की मिटाता हूं पर,
फसलों की प्यास कौन,बुझाए रे बदरा।
आस लगाए बैठा हूं तुम पर,
बरसोगे कब,बताए रे बदरा।
अब न बरसे तुम तो पौधों पर,
तड़प कर मर, जाए रे बदरा।
जब न रहेे फसल मेरी,
अन्नदाता कैसे,कहलाए रे बदरा।
आस लगाए बैठा हूं तुम पर,
बरसोगे कब,बताए रे बदरा।
सावन बीता सूखा-सूखा पर,
भादो आस,जगाए रे बदरा॥
                                                                                    #संजय साहू
परिचय: संजय साहू की जन्मतिथि २ दिसम्बर १९८७ एवं जन्म स्थान ग्राम- रोहनाकलां है। आप राज्य मध्यप्रदेश के जिला छिन्दवाडा़ में रहते हैं। बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) की शिक्षा के बाद आपका कार्यक्षेत्र म.प्र. ग्रामीण सड़क वि. प्राधिकरण छिन्दवाड़ा में बतौर उपयंत्री है। आपकी विधा-कविता है। लेखन का उद्देश्य शब्दों के माध्यम से समाज से संबधित समस्याओं को व्यक्त करना और उन्हें समाज के सामने लाना ।

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