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दरख्त कभी बूढ़े नहीं होते,सदा देते छाँव हैं।
ढलती शाम के सायों में देते हमें विश्राम हैं॥
इनका हाथ थाम के रखो,ये सुबह की धूप है।
सिर पर सदा बने रहे इनके हाथों की दुआएं॥
नन्हें हाथों को मिलता इनसे बड़ा इनाम है।
बच्चे के चेहरों की रौनक इनकी मुस्कान है॥
लड़खड़ाते हैं कदम, फिर भी ये न आम है।
ये तो तेरे मंदिर के जलते चराग़ों के समान है॥
इनके पैरों की धूल में मिलते सारे तीरथ धाम है।
न जाओ तुम मंदिर ये खुद मन्दिर समान है॥
रोज सुबह जो घर से जाते बच्चे उंगली थाम के।
शाम सबेरे किस्से सुनाते ये बच्चों के दादा हैं॥
ज्यादा भी तुम धन कमा लो,आए न वो कोई काम है।
इनको थामो इनको मानो,तो घर में खुद भगवान हैं॥
#आकांक्षा द्विवेदी
परिचय : आकांक्षा द्विवेदी की जन्मतिथि १६ अक्टूबर १९८६ है। आपकी शिक्षा स्नातकोत्तर और पेशे से शिक्षिका हैं। लेखन क्षेत्र में शीघ्र ही २ पुस्तक आने वाली हैं। कवियित्री आकांक्षा द्विवेदी का निवास बिंदकी जिला फतेहपुर में है।सामाजिक अव्यवस्था पर कविता के माध्यम से प्रहार करके सुधार लाना आपका उद्देश्य है।
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