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पिता की डांट,
पिता का प्यार।
पिता की निगाहें,
पिता का उपहार॥
भीतर जिनके दर्द,
पीडा़ का भंडार।
फूल बनकर मेरा,
महकाएं संसार॥
मुश्किल में डटे रहें,
पीड़ाओं में मौन।
पर्वत से अडिग रहें,
पिता जैसा कौन॥
पिता से ही संस्कार,
पिता सृष्टि का सार।
जाना जिसने पिता को,
पाया उसने आशीष अपार॥
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।
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