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जागता ही रहा चाँदनी के लिए,
रातभर चाँद घन में छुपा ही रहा…।
भावनारण्य में मन भरमता रहा,
भाव जाने न कितने तिरोहित हुए।
बादलों ने बदल आचरण निज दिए,
और छद्मोन्मेषी पुरोहित हुए।
दे गया भ्रम पुनः कर गया विभ्रमित,
चित्त फिर भी न विचलित हुआ,सब सहा…….।
आज अवकाश आकाश में ना रहा,
ग्रह-उपग्रह सभी लड़खड़ाने लगे।
घोर गर्जन गरज घन किए इस तरह,
सृष्टि के चर-अचर थरथराने लगे।
वात वातायनों से बहक वेग से,
कल्पना-गन्ध को अब दिया ही बहा…….।
भाव आराधना -साधना के सभी,
भंग हो के पृथक दूर मुझसे हुए।
दांव पर लग गई आज तक की उमर,
हर कदम दर कदम रोज हारे जुए।
ज़िंदगी कट गई इस तरुण उम्र में,
वेदना की नदी में नहा ही नहा……।
जागता ही रहा चाँदनी के लिए
रातभर चाँद घन में छुपा ही रहा….॥
#विजय गुंजन
परिचय : बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा साहित्यिक अवदान के लिए विजय गुंजन को पुरस्कृत किया जा चुका है। शंकरदयाल शर्मा स्मृति संस्थान द्वारा भी नवगीत रत्न सम्मान दिया गया था। आप बिहार राज्य के निवासी हैं। साथ ही बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में २०१४ में गीतकार के रूप में आरसी प्रसाद सिंह सम्मान पत्र भी प्राप्त किया है।
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