ग़म

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manish
खुशियों का भला कहाँ कोई ठिकाना होता है,
बस गम है जिनका आना और जाना होता है।
रहना तो होगा इक पल के लिए खुद से दूर,
अपनों के बीच रहकर भी दूर जमाना होता है।
जब तक है ख्वाब,नींद नहीं रहती आँखों में,
हकीकत में मानो तो यह एक फसाना होता है।
आने को तो आ जाती है खिजां पर भी बहार,
ना हो समां सुहाना तो तूफां से बचाना होता है।
पहलूओं में जिंदगी डुबोकर रख देती है शाम,
रात होते ही खुद को प्यालों में डुबाना होता है।
मर जाते हैं एक दिन सच के साथ जीने वाले,
झूठ की बदौलत में ‘मनीष’ जमाना होता है ।

                                                                  #मनीष कुमार ‘मुसाफिर’

परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।

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