माँ का अर्थशास्त्र

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satindar
मेरी माँ ने पढ़ा है जाने कौन-सा शास्त्र,
कम रुपयों में भी बदल डाला पूरा अर्थशास्त्र।
जाने कौन-सी तरक़ीब लगा दी,
वस्तु विनिमय की नींव हिला दी।
ग़ुरबत में आय न थी न लाभ की उम्मीद,
उनकी बचत की परिभाषा का मैं बन बैठा मुरीद।
बचत की परिभाषा कुछ इस तरह समझाती थीं,
कि रफ़ कॉपी पहले पेंसिल से भरवाती थी।
पुनः अवलोकन पेन से करवाती थीं,
और पूरा पाठ मुझे ऐसे याद कराती थीं।
रात की बची दाल के  सुबह पराठे बना करते थे,
वो हरी चटनी भी हम क्या खूब खाया करते थे।
इच्छा,शक्ति,तत्परता मिलकर बनती आवश्यकता,
भूमि,श्रम,पूँजी,साहस के उपयोग में उनकी निपुणता।
साधारण हो या चक्रवर्ती ब्याज़,
कम स्रोतों में किया विकास
मेरी माँ ने पड़ा है जाने कौन- सा शास्त्र।
कम रुपयों में भी बदल डाला पूरा अर्थशास्त्र।
                                                                                            #सतिंदर सिंह
परिचय : सतिंदर सिंह का जन्म २९ जुलाई १९८५ का है। एम.कॉम. की शिक्षा प्राप्त की है,और शिक्षक हैं। आप उत्तर प्रदेश के ललितपुर में रहते हैं। लिखना आपका शौक है।

matruadmin

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